यह भी झूठ है | Yeh Bhi Jhooth Hai
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उप्त जिंदगी में हमारी दिशा का निर्धारण नहीं करता जो जिंदगी हमें यानी औरत
को जीनी पड़ती है इस समाज में, इस व्यवस्था में...
समाज और व्यवस्था का डर मन में क्यों बैठ जाता है, नहीं जानती... नारी
और उसके जीवन की विकृतियों को लेकर यह समाज और व्यवस्था दोनों क्यों चुप
रह जाते हैं मुझे यह भी नहीं मालूम...
लेकिन यहां प्रश्न है नारी और उसके जीवन की विकृत वास्तविकताओं का,
उसकी सृष्टि के घटना चक्रो का, उसके सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व का...आज की
पांचालियों की विवशता, भीषण विपन्नता में चीने वाली प्रणम्य नारी को निर्वस्त्र
गदे नालो मे स्नान करा कर आज की अनैतिक सभ्यता चैकडों सवालों को जन्य
दे रही है । उनके अभावौ की आंखों से करुणा के निर्जर बहते है पर उन्हें शब्दबद्ध
करने के लिए किसी वाल्मीकि का जन्म कभी नहीं होता...
मेरी बेटी लौट आई है क्योकि वह बेजुबान सास के दिए हुए आमों का स्वागत
नहीं कर पाई, पर उसने उपेक्षा भी कहां की ? अच्छे आम उसका बेटा खाएगा,
उन्हें सहेज कर रखने की हिदायतें उससे बदश्ति नहीं हुई...
हर बार मां-बाप का गालियों से दागा जाना भी उसे रास नहीं आया...
'पूंजीपति बाप की बेटी है तो हुआ करे, इससे हमे क्या सरोकार... हमारा
घर तो इसके आते ही ऐसा डूबा जैसे किसी जलाशय मे तैराकी न जानने वाला
भारी शरीर... एक भी तो अच्छे लक्षण नहीं दिखाए इसने. बल्कि जब से आई है
हम तबाह ही हुए हैं... न कीरत न सीरत, भगवान ने कुछ भी तो नही दिया है
इसे...
“হজ नही, पचास फैक्ट्रियां होंगी इसके बाप की, करोड़ो का व्यापार होगा,
पर बेटी को क्या दिया उस करोड़पति ने... और दामाद को ? कभी पांच गिन्नियो
से टीका ही कर दिया होता...
दिन-रात जाप के मंत्र थे सास-नन्दों के... कभी जल्दी सो गई तो :
अभी से सो गई महारानी, बाप के घर से बांदियां लाई है, वही करेगी इसका
काम... कभी आंख लग जाती, उठने में थोड़ी देर हो जाती तो, उठने की सुधि
अब आई है रानी जी को...धूप तापने के लिए...हम तो बांदियां हैं इनकी, काम में
लगी रहेंगी, इनका चाय-पानी, माश्ता-खाना...इन्हें तो सब कुछ रेडिमेड चाहिए...“
दामाद संगदोष से घायल था लेकिन वह इलजाम भी मेरी बेटी पर ही रखा
गया :
एक पति को भी सहेज कर नहीं रख पाई... इसी के चलते वह संगदोष का
शिकार हुआ... कुछ कहती हूं तो कहता है-विवाह तो तुमने किया था न... बहू के
14 / यह भी झूठ है
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