जैनधर्म प्रकाश | Jaindharm Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ड ) ; ठौक नहीं है और न यह हिन्दमत की हो शाखा है । क्योंकि ` साख्य मीमांसादि दशनो से इसका दार्शनिक मामं भिन्न ही . प्रकार का है, जो इस पुस्तक के पढ़ने से विद्त होगा । । जैनमत की शिक्षा सीधी और वैराग्यपूर्ण है | दर एक . शृहस्थ को निस्‍्न छुः कर्म नित्य करने का उपदेश है (१) देखपूजा, ( २ ) गुरु भक्ति, ( ३ ) शासत्र पढना, (४ ) सयम्र (50६ ००7070 0: 66100678005) ছা अ्रभ्यास, (४ ) तप (सामायिक या संध्या या ध्यान या 710010007, (६) दान ( आहार, औषधि, अमय तथा विद्या ) । उनको निम्न आउमूल गुणोके पालनेका उपदेश भी है।-- मद्य सांस मधु त्यागे! सहाणुत्रत पंचकम । अष्टौ यलगुणानाहदीणां भ्रमणोक्तमाः ॥ अर्थात्‌ मद्य या नशा न पीना, मांस न लाना, मधु यानी शहद न खानां, फ्योंकि इनमें बहुत से सदम जंतुओं का नाश होता हैः पाँच पापोसे बचना अर्थात्‌ जान वूफकर तथा पशु पक्ती श्रादि की हिसा न करना, सड न वोलना, चोरी न करना श्रपनी खी य संतोष रखना, परिग्रह या सम्पत्ति की मर्यादा कर लेना जिससे वृष्णा धटे । इनको गृहस्था के श्राह मलगुा उत्तम आंचार्यों ने बतलाया है। हमारे जैनेतर भाई देख सकते हैं कि यद्द शिक्षा भी हर वक मानव को क्रितनी उपयोगी है। यद्यपि और धर्मों में भी अददिसा तथां दयाका उपदेश है घ मांसाहांर का निषेध है, परन्तु उनका आचरण जेनियों के सदश नहीं है। कारण यही हे कि कही २ उनके पीदेके टीकाकारोने इस उपदेश मे रिथि-




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