श्री जैन तत्व दर्श ग्रन्थ | Shri Jain Tattvadarsh Granth

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Book Image : श्री जैन तत्व दर्श ग्रन्थ  - Shri Jain Tattvadarsh Granth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 नक किसी रीतिसै कडते ३? जसी आगं काका समाधान तथा तिच्यालका कुक स्वरूपन कडा दै २ दूसरे सास्वादन यु स्यानकके स्वरूपमें इसका कारण जूत जो ओपशमिक सम्यक्ल हे तिलका स्वरूप. ३ तीसरा मिश्नगुणस्थानकका स्वरूप ४ चौथे अविरति सम्यगृहएि सुणसुथानकके स्वरुपमे सम्यक््‌ हष्टिजीवका लक्रण आओ यथा प्रदव॒त्यादि त्रण करणोका लक्षण ५ पाचवे देशविरति गुणस्थानकके स्वरूपमे श्रावकका पट्कर्मा दि- ६ उघ प्रमत्ततयत गुणस्थानकके स्वरूपमें किचित्‌ धमेध्यानका स्व रूप तथा यड्‌ युणस्यानमें निरालबन ध्यान दता नर्दी हे ति सका निश्चय करके, आजके कालमे कितनेक अपनी कव्पनासे ओऔरका जोर बोलते हे तिनको उपदेश दीया हे ७ सप्तम अप्रमत्त युण स्थानकके स्वरूपमे धर्मध्यानका स्वरूप से जयादि अनेक जेद रूप तथा यड गुण स्थानमें सामायिकादि पद आवश्यक नहीं दे तिसका व्याख्यानादि करे हे ए आया, नवव।, दसवा, एग्यारद्वा, श्रु वारह॒वा, यह ঘা गुण स्थानोके स्वरूप एकि करे हे, ९समे उपरम श्रेणि ओर क्पक अणिका किंचित्‌ खरूप थोर झुक्कध्यानफा खरूप अश्ले विस्तार पूर्वक, रेचक, पूरक, कुनकादि ध्यानका व्युत्पत्ति सहित अये करकें ओर सरूप कहके निरुपण कर। हे हि ए तेरहुवे सयोगी छुण स्थानसें सयोगी केवल्लीका नाव कद हे, तथा तीर्थकरनाम कमे उपाजेन करनेका वीश स्थानक ओऔ तीस कर नगवानकी महिसा त्या त्ीथक्रनाम कमे वेदनेका स्वरूप, केवली सघ॒द्ात्तफा स्वरूप तथा कोन ससुद्धात करतारै१ र कौनसा फेयल्री नदी करता ই? तिसका स्वरूप तया मना বি योगौँ्को किसी तरेद्‌ खङ्म करता दै, इत्यादि स्वरूप, १० चोदद्टवा शयो यण स्यानकका स्यरूप तिसमें कमर दित বাঁ की जो कर््पैगति होती ह तिसफा रेष खौ सिं स्विति, লিলীকা গাল ভৃত্য, লিীক্কা सुख खरु खक्तिका स्वरुप. ग २५५ २५७ মত २५९ १६१ एषण २९७२ १०३ হও




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