प्रेमचन्द एक विवेचना | Prem Chand Ek Vivechana

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Prem Chand Ek Vivechana by डॉ. इन्द्रनाथ मदान - Dr. Indranath Madan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न पूथ पीठिका कर ६! लगान को चुकाने में असमर्थ होने पर वह वदखल कर दिया जाता था और उसे अपने सर्वस्व सं हाथ घान पड़त थे । धोदान' का होरी ऐसे किसान का जीता-जागता चित्र ह, जा भूख, बीमारी, उपेक्षा, पीड़ा श्रौर मृत्यु के साथ संघ करता है। 'यह पुराना रिवाज़ था और बहुत समय से कुपकब रिद्रता दढ़ती चली आ रही थी। आधिक स्थिति न एक मस्तप्क को चेतना दी और देहात में जागरण का शंखनाद हुआ | ६६२०-२२ का किसान दिद्रोदद युकतप्रांत के कुछ हा जिला तक सीमित था। लेखक का मत हैं कि किसान-झान्दालत के लए व्वध विशेष रूप से उपयुक्त चत्र था । यह ताल्लुकदारा को प्रांत था श्र हैं। यहाँ जुमीदारी प्रधा अपन निकुद्रतम रूप में दिखाई देती हैं। पं० जवाहरलाल का कहना है कि फिसान- ग्रान्दोलन कांग्रे स-ान्दोलन से विलकुल भिन्न था अर इसका ब्रसहयोग-श्रान्दोलन से कोइ सस्त्रन्ध न था । वे 'लमीदार' शब्द के शभिप्राय को स्पष्ट करते हैं। ये कहते हैं कि जमीदार बड़े भूमिपति नहीं है। जिन प्राता मे रैयतवारी प्रथा हैं वहाँ इसका अथं उस किसान से है जो व्पपनी जमीन का मालिक भी हो | यहाँ तक कि जिन प्रान्ता म विशेष प्रकार की जमीदारी प्रथा हैं. वहाँ इसका अमिश्राय कड़ बड़े ज़मींदारों से है, कुछ हजारों मध्यवग के सीर ज्ञातन वाले किसानों से हैं, श्रौर कुछ उन लाखों व्यक्तिया स है. जा चोर दरिद्रता का जीवन विताते हैं। युक्तप्रान्त की जनगणना से यह बात स्पप्र हो जाती हैं कि मोटे तौर पर पन्द्रह लाख व्यक्ति हैं, जिनको ज़मीदार कहा जा सकता हैं । इनमें से ६६ प्रात शत की स्थिति वही हैं, जो एक दरिद्रतम किसान की होती हैं पूरे प्रान्त में बड़े-बड़े ज़मीन के मालिक भी पाँच हज़ार से अधिक नहीं हैं । केवल पाँच सौ को वड़े जमीदारों और ताल्लुफे




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