अपभ्रंश का योग | Aapbransh Ka Youg Ac 4405

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Aapbransh Ka Youg Ac 4405 by नामवर सिंह - Namvar Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-सूची प्रथम खण्ड ( भाषा ) अध्याय पृष्ठ १, अपश्रेश भाषा : उद्धव ओर विकास १--५१ अपभ्रश संज्ञा--अपभ्रश का अर्थ--अपश्नंश शब्द को प्राचीज़ता - संल्कृत व्याकरण में अपभ्रंश शब्द--गावी-गोखी आदि अपभ्रंश शब्दों का विश्लेषण--भाषा-विशेष के लिए श्रपभ्रंश शब्दे का प्रयोग--अ्रपश्रंश और देशभाषा-- प्राकृत- मेवापभ्र॑शः--श्रपभ्रंश की प्रकृति -प्रकृतिः संस्कृतम्‌--- श्रपश्रेश की विशिष्टता- उकार-बहुला भाषा--अपश्रंश भाषा की आ्रारम्भिक अवस्था--पश्चिमोत्तर भारत की बोली और अपभ्रंश--आभीरी बोली और अपश्नंश--आभीरादि में श्रादि कौन १--क्या श्रपश्रश मूलतः पजान राजस्थान और गुजरात की बोली थी ?--अपभ्रश के उत्थान का ऐतिहासिक कारण--्ञ्रपश्रश के भेद--अ्रपश्रंश के क्षेत्रीय मेद-- दक्षिणी श्रपश्रश--पूर्वी अ्रपश्रंश - परिनिष्ठित श्रपश्रंश आर उसकी मुख्य विशेपताएँ--लिपि-शैली की कठिनाइयाँ--- ध्वनि-परिवर्तन के नियप--रूप-निर्माण की मुख्य प्रवृत्तियाँ । >. परवर्ती अपभ्रंशा और उसमें हिंदी के वीज ४२--६६ परिनिष्ठित श्रपश्नश में देसी बोलियों का विभ्रणु-- परवतीं अ्पभ्रंश में देशभेद--परवर्ती अपश्रंश का पश्चिमी साहित्य--पश्चिमी प्रदेश के परवर्ती अपभ्रंश की विशेषता-- ध्वनि-संबंधी प्रवृत्तियॉ--रूप-निर्माण-संबंधी . विशेषताएँ-- पूर्वी प्रदेशों का परवर्ती अपश्रंश साहित्य- पूर्वं प्रदेश के




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