अपभ्रंश का योग | Aapbransh Ka Youg Ac 4405
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
385
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-सूची
प्रथम खण्ड ( भाषा )
अध्याय पृष्ठ
१, अपश्रेश भाषा : उद्धव ओर विकास १--५१
अपभ्रश संज्ञा--अपभ्रश का अर्थ--अपश्नंश शब्द को
प्राचीज़ता - संल्कृत व्याकरण में अपभ्रंश शब्द--गावी-गोखी
आदि अपभ्रंश शब्दों का विश्लेषण--भाषा-विशेष के लिए
श्रपभ्रंश शब्दे का प्रयोग--अ्रपश्रंश और देशभाषा-- प्राकृत-
मेवापभ्र॑शः--श्रपभ्रंश की प्रकृति -प्रकृतिः संस्कृतम्---
श्रपश्रेश की विशिष्टता- उकार-बहुला भाषा--अपश्रंश भाषा
की आ्रारम्भिक अवस्था--पश्चिमोत्तर भारत की बोली और
अपभ्रंश--आभीरी बोली और अपश्नंश--आभीरादि में
श्रादि कौन १--क्या श्रपश्रश मूलतः पजान राजस्थान और
गुजरात की बोली थी ?--अपभ्रश के उत्थान का ऐतिहासिक
कारण--्ञ्रपश्रश के भेद--अ्रपश्रंश के क्षेत्रीय मेद--
दक्षिणी श्रपश्रश--पूर्वी अ्रपश्रंश - परिनिष्ठित श्रपश्रंश
आर उसकी मुख्य विशेपताएँ--लिपि-शैली की कठिनाइयाँ---
ध्वनि-परिवर्तन के नियप--रूप-निर्माण की मुख्य प्रवृत्तियाँ ।
>. परवर्ती अपभ्रंशा और उसमें हिंदी के वीज ४२--६६
परिनिष्ठित श्रपश्नश में देसी बोलियों का विभ्रणु--
परवतीं अ्पभ्रंश में देशभेद--परवर्ती अपश्रंश का पश्चिमी
साहित्य--पश्चिमी प्रदेश के परवर्ती अपभ्रंश की विशेषता--
ध्वनि-संबंधी प्रवृत्तियॉ--रूप-निर्माण-संबंधी . विशेषताएँ--
पूर्वी प्रदेशों का परवर्ती अपश्रंश साहित्य- पूर्वं प्रदेश के
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