काव्यसुमन | Kaavya Suman
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
187
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूरदास
हम जो प्रीति करी माधव জী, चलत न कछू क्यो ।
'सूरदास' प्रभु बिन दुख दूनों, नैननि नीर बद्मों॥
(५)
सब जग तजे प्रेम के नाते $
चातक स्वाति-बू द नहिं छाँड़त, प्रगट पुकारत ताते।
समुभत मीन नीर की बातें, तजत प्राण हठि हारत।
जानि कुरंग प्रेम नहि त्यागत, जदपि व्याध सर मारत |
निमिष चकोर नैन नहि लावत, ससि जोवत जुग बीते ।
ज्योति पतंग देखि बपु जारत, भये न प्रेमघट रीते॥
कटि ग्रलि, क्यो विसरति व बात, संग जो करी ब्रजरा्जं।
केसे ^सूरस्याम' हम छडे, एक देह के काजं॥
( ६ )
ऊधौ, मन माने की बात ।
दाख, छोहारा छाँड़ि श्रमृतफल, विषकीरा विष खात।
जो चकोर को देइ कपूर कोइ, तजि श्रंगार अ्रघात ।
मधुप करत घर कोरे काठ में, बंघत कमल के पात।
ज्यों पतंग हित जानि आपनो, दीपक सों लपटात ।
'सूरदास' जाको मन जासों, सोई ताहि सुहात ॥
( १० )
छाँडि मन हरि-विमुखन को संग ।
जाके संग कुबुधि उपजति है, परत भजन में भंग।
कागहि कहा कपुर चुगये, स्वान न्हवाये गंग।
खर को कहा ्ररगजा लेपन, मरकट भूषन श्रग।
पाहन पतित बान नहि भेदत रीतो करत निधय ।
'सूरदास' खल कारी कामरि चट न दूजो रंग॥
१५
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