पेरिस की नर्तकी | Paris Kii Nartakii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
201
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वम्भरनाथ शर्मा - Vishvambharnath Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पेरिस की नतंकी
“घर पर क्या रहें, क्या घरा हे घर पर ? कोई बात करने वाला
भी तो हो ! बहुएँ बेचारी ओर परेशान रहती हैं | खुलकर उठने बैठने
नहीं पातीं; हम भी बंधे से रहते हैं | यहाँ रहने से हमें भी आराम हे।
यह अच्छा--या वहाँ रह कर तकलीफ उठाना अच्छा १?
“आर सब लोग रहते हैं या नहीं ! वे सब केसे रहते है ? युवक
बोला--
“रहते होंगे । उन्हें अच्छा लगता हे--रहते हैं, हमें नहीं अच्छा
लगता । अरब सरकार इन्हें हमारे यहाँ रहने से इतनी परेशानी है कि
यहाँ इस बखत खाना पहुँचाना पड़ता है--बस ! इतनी सी बात के
लिए यह हमें वहाँ रखना चाहते हैं |”
“हमें कौन परेशानी हैे--हमें कहो तो दिन में चार दफे श्राव
जावें, और आते जाते ही हैं। घर मे थोड़े ही पड़े रहते हैं | काम तो
यहीं है ।” युवक ने कहा ।
गुड़ेत बोल उठा--“देखो बबुआा, एक बात तो हम भी कगे |
काका के यहाँ रहने से तुम्हारी खेती गाँव ऊपर रहती है। इतना गल्ला;
सरकार, गाँव में किसी के खेतों म॑ नहीं होता, जितना इनके खेतों म॑
होता है। सो बात क्या है ? काका यहाँ हर समय मोजूद रहते हैं ।
क्या मजाल जो घास का श्रेकुर भी खेतों में जम जाय। हर बखत खुरपी
लिये घूमा करते हैं। रात में इनके मारे कोई जानवर भी नहीं आने
पाता । रात भर में चार दफे उठकर चक्कर लगाते हैं ।”
“अरे मैकू भदया, तब भी नुकसान हो ही जाता है। परसों सुअर
हमारी सकरकन्द खा गये | ऐसा रंज. हुआ कि क्या कहें । कहाँ तक
पहरा दे । सुअरों के मारे नाक म॑ दम हे | हमारे मालिक ब्राह्मन ठहरे,
शिकार करते नहीं। नहीं तो बन्दूक हई है, किसी दिन रात में यहाँ
बैठ जाँय और दो-एक को लुढ़का दे, बस फिर न आवे | आधा बिसुवा
र
User Reviews
No Reviews | Add Yours...