पाण्डव चरित भाग 2 | Pandaw Charit [ Vol.-ii ]

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Pandaw Charit [ Vol.-ii ] by शोभाचन्द्र भारिल्ल - Shobha Chandra Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाण्डब-्चरित .,¡ » १९ ्विगार किसे बतलाओगी ? आपके सिगार एवं सौन्दर्य का अन्ये पति के आगे कोई मूल्य न होगा । इसलिए कहता हूँ कि निःसं- कोच भाव से सोच-समभकर निर्णय करो । गांधारी फिर भी मौन थी । उसे मौन देख उसकी सखियों कहा--यह सब वां इन्होंने सोच ली हैं । सिगार के विपय में फी शिक्षा यह है-- बहिनो री, कर लो ऐसो सिग्ार, जाप उत्तरोगी भव-पार ।वहिनो०। अद्ध शुचि कर फिर कर मन्नन वस्र अनूषम धार, বামন फो त्न मन जल चे विद्या वतन संवार | केश सेवारहु मेल परस्पर न्याय की माँग निकार, धीरज रूपी महावर धारहु यश्ञ हो टीका, लिलार -। क्षण न व्यथं देते तितत धारो मिल्‍्सी पर-उपकार, लाज रूपौ कज्जल नयनन में ज्ञान अरगजाचार-। आभूषण ये तन में पहनो सम संतोग विचार, मेंहदी प्रृष्यकली सों शोभित दान सुभग आचार । वीर विनय की स्ना मुपे ग्र सुमंगृत धार, पिया तेयो देखत হী হার্ট লহ মী পলিশ । गांधारी की ससियाँ पुरोहित से कहती हैं--राजकरुमारों ,से हमें सिससाया है कि सित्रियाँ स्वमावतः सिधारत्रिय होती हैं, लेकिन जो स्त्री ऊपरी सियार ही फरती है और भीतरी पिंगार नहीं करती, उसके ओर वेश्या वेः क्षार मं क्या अन्तर दै? यह्‌ बान नहीं है कि कु्लांगनाएँ ऊपरी सिगार करती ही नहीं, लेकिन उनके ऊपरी किमार का संवंध भीतरी निगार्‌ के गाय होता है 1 कदा- चित्‌ उनका ऊपरी सिंगार छिन भी जाए तो भी बहू अपना भाव- सिगार कमी नहीं छिनने देतीं राजकुमारी कहती है--मैं अन्ये पति की सेवा करे मी ने इन'




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