तत्त्वार्थसूत्र | Tattwarthasutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १३ कहेत विषयक श्रम का निराकरण यद्यपि यहाँ मुख्य रूप से यह बिचारणीय नहीं है कि तत्त्वाथसूत्र के कर्ता किस परम्परा के थे । वे किसी भी परम्परा के रहे हों इसमें हानि नहीं है; क्योंकि सवस्प्र दीक्षा और इससे सम्बन्धित अन्य विषयों को छोड़कर दोष बिषय साम्प्रदायिकता से सम्बन्ध नहीं रखते । यहाँ तो हमें प्रमुखता से यह देखना है; कि तत्त्वाथसूत्र के संकलन का मुख्य श्रेय किसे दिया जाय । जैसा कि हम पहले बतला 'झाये हैं. तदनुसार यदि पूर्वोक्त सभी उल्लेखों को प्रमाण माना जाय तो तत्त्वाथसूत्र के कर्ता चार आचःये ठहरते वाचक उमास्वाति, ग्रद्धपिच्छ उमास्वाति अर गृद्धपिच्छ उमास्वामी, इसलिये विवेक यह करना है कि इन उल्लेखों में किसे प्रमाण माना जाय | यह तो स्पष्ट है कि ग्द्धपिच्छ विदोषण के साथ उमास्वाति का उल्लेख चन्द्रगिरि पवत पर पाये जानेवाले शिलालेखों के सिवा अन्य किसी आचाय ने नहीं किया है इसलिये अधिकतर सम्भव तो यही दिखाई देता है कि यह नाम कल्पित हो और यह भी सम्भव है कि इसी प्रकार ग़्द्धपिच्छ उमास्वामी यह नाम भी कल्पित हो । यह हम जानते हैं कि मेरे ऐसा लिखने से अधिकतर विद्वानों को धक्का लगेगा पर यह अनुशीलन का परिणाम है । इसी से ऐसा लिखना पढ़ा है । दिगम्बर परम्परा में गृद्धपिच्छ तत्त्वाथसूत्र के कर्ता माने जाते थे और श्वेताग्बर परम्परा में वाचक उमास्वाति हुए हैं जो उत्तरकाल में तत्त्वाथेसुत्र के कतों माने जाने लगे थे, इसलिये ये दोनों नाम मिलकर आगे इस भ्रम को जन्म देने में समथे हुए कि तत्त्बार्थसूत्र के कर्ता गृद्धपिच्छ उमास्वाति हैं. और स्वाति से स्वामी शब्द बनने में देर नहीं लगी इसलिये किसी किसी ने यह भी घोषग्ता की कि तत्त्वाथ सूत्र के कर्ता ग़्द्धपिच्छ उमास्वामी हैं ।




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