अन्किचित्कर एक अनुशीलन (१९९० ) | Ankichitkar Ek Anushilan (1990) Ac 6195
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)35 नमः सिद्धेभ्यः
मंगलं भगवान् वीरो मंगल गौतमो गणी ।
मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥
सव्वण्हु सव्वदसी णिम्मोहा वीयराय परमेट्ठी ।
वंदित्तु तिजगवदा अरहता भव्वजीवेहि ॥ १॥
आचार्य कै है जो मे अरहत परमेष्ठी कू वदिकरि चारित्रपाहुड है ताहि कर्हूगा
कैसे है अरहत परमेष्ठी-अरहत एसा प्राकृत अक्षर अपेक्षा तौ एेसा अर्थ-अकार आदि
अक्षर करि तौ “अरि” एसा तौ मोहकर्म' बहुरि रकार आदि अक्षर अपेक्षा रज एसा
ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्म बहुरि तिस ही रकारकरि रहस्य एसा अतराय कर्म ऐसे
च्यार घातिकर्म तिनिकृू हनना घातना जाक मया एसा अरहत है । बहुरि सस्कृत अपेक्षा
“अर्ह” एसा पूजा अर्थं विषै धातु ठै ताका “अर्हत्” एसा निपज्जै तब पूजा योग्य होय
ताकू अर्हत् किये सो भव्यजीवनिकरि पूज्य है । बहुरि परमेष्ठी कहने तै परम किये
उत्कृष्ट इष्ट किये “पूज्यः होय सो परमेष्ठी किये । अथवा परम जौ उत्कृष्ट पद
ता विषै तिष्ठै एसा होय सो परमेष्ठी । एसा इन्द्रादि करि पूज्य अरहत परमेष्ठी है।
बहुरि कैसे है सर्वज्ञ सर्व लोकालोक स्वरुप चराचर पदार्थनिकू प्रत्यक्ष जानै सो सर्वज्ञ
दै । बहुरि कैसे है- निर्मोह मोहनीय नामा कर्म की प्रधान प्रकृति मिथ्यात्व है ताकरि
रहित है । बहुरि कैसे है- वीतराग टै विशेषकर जाक राग दूर मया होय सो वीतराग,
सो जिनकै चारित्र मोहकर्म का उदयतै होय एसा रागदेष भी नाही है । बहुरि कैसे है-
त्रिजगद्दद्य हैं, तीन जगत के प्राणी तथा तिनिके स्वामी इन्द्र. धरणेन्द्र, चक्रवर्तीं तिनिकरि
वदिवे योग्य है एसे अरहत पदकू विशेष्य करि अन्य पद विशेषण करि अर्थ किया है।
बहुरि सर्वज्ञ पदकू विशेष्यकरि अन्य पद विशेषण है | करिये ऐसे भी अर्थ होय है तहौँ
अरहत मव्यजीवनिकरि पूज्य हैँ एसा विशेषण होय हैर |
१यापागा१।
२ श्री प जयचन्दजी छाबडा का अनुवाद |
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