मुक्ति - मंदिर | Mukti - Mandir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सरुभूमि ओर जलनिधि से एक ध्वनि ই
मित्र ने लंडन की जनता को मरा परिचय देते हुए सिंध को
मरुस्थल कहा था ! क्या मरुस्थल के पास कोई संदेश नहीं
हे? शोरा ( 21०४८ 0 8०08. ) के सदृश्य शायद ही
कोई वस्तु व्यापार की जन्नति में काम आती हो; क्षतु
यह वस्तु चिलीदेश ( दक्षिण अमेरिका का एक मुख्य
प्रांव ) की सझुभूसि में ही पाई जाती है उस मरुप्रंत में
कोई पेदाबार नहीं होती। वह भूमि वध्या हे, कतु बही
एर यह उपयोगी चीज़ बेहिसाब पाई जाती है। सिंघ भी
एक मरस्थल हे, किंतु वर्ह भी एक सहाम् फल्नप्रद वस्तु
৬১ ৬২
के--एक रहस्यमय आलोक के--दशन होते हैं । यह
५ ४
आलोक है अनेक में एकता का, एकता में विभिन्नता का |
इसी उदार आलोक की ध्वनि सिंधी कविता में
৬২ / ৯২ ॐ, (~ ৫৩ भ (~. ১ (~
मेरा नख्र निवेदन है कि सिध के कक्ष्यं मौर सिद्ध सहा-
त्माओं का यही गहन आलोक राष्ट्रीय जीवन को सचेतन
^
১
2 ৬২ भ ৪ ^ £, ৯২
बतान के लय आवश्यक হ | 1 नदों के ता ॥
पू ২.৬ ৬১ ৬১. ৯৬ ৬২ ৬ ৯৩৯১ भ
बजा ने बड़-बडु आश्रम बनाए थ। वहम उन्न वश्व क
३ 4১
अनंत रहस्य का ध्यान किया था, ओर वेदिक কাল
>,
रचना की था । उनमें से एक मन्न इस मकार है--
८६ ৬২ ( _ ১৩, € इ ग ¢
वह् चाकाश चोर प्रधेवी मै, सवेन व्याप्त है । उह জী
¢ =, ৬২ ০০৯ भ अंक ৬২ न 9१
दर्शी है । उसने सत्य के सूत्र से संसार को बनाया हैं ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...