दक्षिण पूर्वी और दक्षिणी एरिया में भारतीय संस्कृति | Dakshini purvi aur dakshini eriya mein bhartiy sanskriti
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
321
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यकेतु विद्यालंकार - SatyaKetu Vidyalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विपय-प्रवेश १७
लेखकों ने वरवा द्वीप के नाम से लिखा है। सम्भवत:, यमद्वीप यमकोटि था, जिसे अल-
बरूनी ने लंका से ६०१ पूर्व में स्थित वताया है। वायु पुराण में वर्णित विविध द्वीपों के
आधुनिक नामों में मतभेद हो सकता है, पर इसमें सन्देह नहीं कि ये सव द्वीप दक्षिण-पूर्वी
एशिया में स्थित थे ।
वाल्मीकीय रामायण में भी दक्षिण-पूर्वी एशिया के अनेक द्वीपों का उल्लेख है । उसमें
एक श्लोके माया दै, जो महत्व का है---
यलनवन्तो यवद्वीपं सप्तराज्योपशोधितम् ।
सुव्णंरूप्यकद्रीपं सुवर्णाकरमण्डितम् 11
यही ए्लोक कुछ पाठभेद के साथ हरिवंश पुराण, क्षेमेन््रकृत रामायणमज्जरी मौर
सद्धम॑स्मृत्युपस्थानसूतर में भी पाया जाता है । इनमें सुव णेरूप्यक के स्थान पर 'सुवर्णाकुड्य'
पाठ दिया गया है । इन् ग्रन्थों मे जिस यवद्रीप का उल्तेख है, वह वतंमान समय का जावा
है, जो इन्डोनी सिया के अन्तर्गंत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण द्वीप है। प्राचीन साहित्य में अन्यत्र भी
जावा को यवद्वीप कहा गया है। सुवर्णकुड्य का उल्लेख कौटलीय अर्थ शास्त्र में भी आया
है। चीनी ग्रन्थों में इसी को 'किन-लिन” कहा गया है, और उसकी स्थिति पू-नान
(कम्बोडिया) से ५०० मील पश्चिम में बताई गई है। इस प्रकार सुवर्णकुड्य की स्थिति
मलाया प्रायद्रीपमें होनी चाहिए । रामायण के पाठ सुवणं रूप्यक द्वीप' को यदि ठीक
माना जाए, तो वह भी संगत है, क्योंकि ग्रीस और रोम के प्राचीन लेखकों ने चिसी द्वीप
(सुवर्णद्वीप) के साथ अग्यरे द्वीप (रूप्यक द्वीप) का भी उल्लेख किया है।
इसी प्रसंग में रामायण का एक अन्य श्लोक है-- ;
आममीनाशनाश्वापि किराता द्वीपवासिनः ।
अन्तर्जलचरा घोरा नरब्यात्रा इतिश्रुतम् ॥
रामायणमंजरी में इस श्लीक की दूसरी पंक्ति का पाठ इस प्रकार है---'अन्तर्जलच रान्
घोरान् समुद्रद्वीपसंश्रथान्! । यहाँ जल में अनवहत प्रवेश रखने वाले जिन घोर किरातों
का उल्लेख है, वे 'समुद्रदरीप के निवासी थे 1 सम्भवतः जिस हप्र को आजकल सुमात्रा
कहा ,जाता.है, उसी का प्राचीन नाम समुद्रद्वीप था, और सुमात्ना. समुद्र शब्द का ही
अपश्रृंश है। कौटलीय अथंशास्त्र में भी 'पारसमुद्र' और 'पास' संज्ञक दो प्रदेशों का उल्लेख
है। सम्भवतः, पारसमुद्र वही है, जिसे रामायणमंजरी में समुद्रद्वीप (सुमात्ना) कहा गया
है, और पास आधुनिक पासे है, जो सुमात्ना के उत्तरी भाग में है। मंजुश्री-मूल-कल्प में
दक्षिण-पुर्वी एशिया के कतिपय'द्वीपों के नाम इस प्रकार उल्लिखित किये गये हैं--.. ८
कर्मरंगाख्यद्वीपेष नाडिकेर समुद्भवम्।
हद्वीपे बारुसके चंव नग्न-वलिसमुद्भवे 11
५ >यबद्दीपे वा सत्त्वेषु तदन्यद्वीप समुद्भवाः ।
~ -. चाचा रकार बहुला तु वाचा अस्फुटतां मताः ॥।
“धन इलोकों में कमंरंग, नाडिक्रेर, वारुसक, बलि, यवद्वीप और नग्न---इन द्वीपों
तथा प्रदेशों का उल्लेख कर इनके सम्बन्ध में यह कहा गया है कि इनकी भाषा में 'र' की
बहुलता है, और वे भली-भांति समझ में नहीं आती । ये सब द्वीप व प्रदेश दक्षिण-पूर्वी
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