मुगल - साम्राज्य का क्षय और उसके कारण | Mugal - Samrajya Ka Kshay Aur Usake Karan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavachspati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दो राज्योंका अन्ध ঙ
^ ^ ^~ ~~ ^~ ~~ ~+ ~~ ^-^ ---- ~~~ ~~-^~“-~--~-~~
~~~ ~~ ~~~“ ˆ ^~ ~
ओरंगजेबने पराजित झत्रुके साथ आदरका व्यवहार क्रिया | उसे दाहिने हाथ
ब्रिठाया, जड़ाऊ तलवार और बेशकीमती पोशाक बख्दशिशर्म दी और मुगृुर
सरदारोम नाम लिखा गया । यह सब नाटक कुछ दिनों तक जारी रह्य जिसके
पीछे पराजित बादशाह सिकन्दर शाहकी छक्ष्मीकी असली फटकारका मज़ा
चखना पडा । लक्मीका स्वभाव है कि जिसपर फटकार জারী ই, ভব বাম
डाले विना नहीं छोड़ती । हिंदोलमें झुलाती भी खूब है, तो पंयतठे रोधती भी
खूब है | बीचमें नहीं टिकने देती | कुछ समय पीछे सिकन्दरशाहके दौलता-
वादके विच केंद कर दिया गया और अगर मनूचीकी गवाहीको सच मानै
तो ओरूंजिबने उसे ज़हर दिलाकर मरवा डाला |
किसी दिन बीजापुर दाक्षिणका चमका हुआ मोती था, उसकी शानपर विदेशी
यात्री लग्टू होते थे | मुगलेने उसे जीतकर उजाड़ कर दिया। उस दिनसे
आज तक बीजापुर एक खण्डरातका ढेर बना हुआ है। यदि कोई संसारकी
शान शौकतकी अस्थिसर्ताका अनुभव करना चाहे तो वह आदिलशाही हुकूमतके
इस उज्डे हुए खण्डदरको देखकर कर सकता दै ।
यइ ओरगलेवका दक्षिण-विजयकी ओर पला कदम था | बीजापुरकी रियासत
गोलकुण्डाके लिए ढालका काम देती थी | ढालके टूट जानेपर मुगुलकी तलवार
गोलकुण्डाके सिरपर तन गई । गोलकुण्डाकी राजधानी हैद्राबादम लमानेवाली
चीजे भी बहुत थीं। वह तो एक प्रकारकी कामपुरी बन गई थी । उस शहरसरमें
बीस हजार वेद्याये थीं, ओर अनगिनत शराब-धर थे। विलासिताका ऐसा
भीषण नृत्य अवधके अन्तिम दिनोंको छोड़कर शायद ही कभी दिखाई दिया
हो। अद्भुत यही था कि गोलकुण्डाके शासक ऐसी रेय्यासीमे रहकर इतने
दिनोंतक जीते केसे रहे । सम्पूर्णं शासन गन्दा ओर निर्बल हो चुका था।
१६७२ में अबुल हसन गोलकुण्डाकी गद्दीपर बैठा । वह इस गद्दोके योग्य
नहीं था | उसकी शिक्षा और दीक्षा शासकके अनुरूप नहीं थी। केवल भाग्य
उसे सिंहासनपर खेंच छाया था। भाग्यने ही उसे ब्राह्मण मन्त्री भी दिया ।
उसका नाम मदन्ना था | वह् एक निर्धन व्रामण-घस पैदा हुमा था । वह ओर
उसका भाई अकन्ना गोलङ्ुण्डामे आकर नौकर हुए । अपनी धूर्तता ओर योमग्यतासे
मदन्नाने खूब उन्नति की, यहाँ तक कि दरवास्मे अपने संरक्षक सय्यद मुजपफरकी
छातीपर पॉँव रखकर वह अबुल हसनका प्रधान -वज़ीर बन गया। मदन्नाकी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...