ब्रह्मविलास | Brahmavilas

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Brahmavilas by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५9 6 /52৮৮১6৯/25/ ভভবিজ (9 12 3० झतअष्टोत्तरी ९. वेतु चेतु चित चेतु, विचक्षण वेर यह । हेतु हेतु तुब हेतु, कहित हों रूप गह ॥ मानि मानि पुनि मानि, जनम यहु बहुर न पाये | ज्ञान ज्ञान गुण जान, मूढ क्यों जन्म মান ॥ वहु पुण्य अरे नरभौ मिव्यो, सो तरू सोवत बावरे । अज ह सभारि कटु गयो नरि शजैयाः कहत यह दायरे ॥५॥ कवित्त सैसो घीत्तराग देव कलो ह सरूपसिद्ध, तसो ही स्वरूप मेरे यामे केर नादीं ह । अष्टकर्म भावकी उपाधि मोम कह नाहिं, अष्ट गुण भेरे सो ता सदा मोहि पाहीं है ॥ ज्ञायक स्वभाव £ मेरो तिह काठ मेरे पास, गुण जे अनन्त तेऊ सदा मोहिमाहीं § है। ऐसो है स्थरूप मेरो तिह काल सुदरूप, ज्ञानदष्टि देखत न दूजी परछाही €॥ ६॥ पिकट भीसिधु ताहि तरिवेको तारू कान, ताकी तुम तीर आये देखो दृष्टि धरिक । अबके सभारेते पार भेले पहुँचत हां, अवके सभारे पिन बृडत टो तरिके ॥ बटस्म फिर मिठमो नाहिं पसो ह सयोग, देव गुरु ग्रथ करि आये हिय धरि क । तारि तू विचारि निज आतमनिहारि ' भैया › धारि परमातमा शुद्ध ध्यान करिक ॥ ७॥ जोप तोहि तरिवेकी इच्छा कछ भई फैया, तो ता बीतरा ! 8 {०2०९०८1 (का ८९1९7 নান 35 गजूके बच उर धारिये । भाममुद्रनलटमे अनादि त वृडत द्य जिननाम नाका मिरी चित्तं न टारिवे ॥ सेयं पिचारि श्ट £ थिरतासों ध्यान काज, सुसके समूहको सुदृष्टिला निहारिये । 8 चस्यिजो ह पथं मिलिये इयौ मारगम, जन्मजरामरनके ए > भयको निरायिये 1 ८॥ ४ ~ ^^ 2८2८ ৩৪০০2 2/२ ভাট তি का वा 557 536 5 আপাতত 2 ও 3 ও




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