ब्रह्मविलास | Brahmavilas
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
295
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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झतअष्टोत्तरी ९.
वेतु चेतु चित चेतु, विचक्षण वेर यह ।
हेतु हेतु तुब हेतु, कहित हों रूप गह ॥
मानि मानि पुनि मानि, जनम यहु बहुर न पाये |
ज्ञान ज्ञान गुण जान, मूढ क्यों जन्म মান ॥
वहु पुण्य अरे नरभौ मिव्यो, सो तरू सोवत बावरे ।
अज ह सभारि कटु गयो नरि शजैयाः कहत यह दायरे ॥५॥
कवित्त
सैसो घीत्तराग देव कलो ह सरूपसिद्ध, तसो ही स्वरूप मेरे
यामे केर नादीं ह । अष्टकर्म भावकी उपाधि मोम कह नाहिं,
अष्ट गुण भेरे सो ता सदा मोहि पाहीं है ॥ ज्ञायक स्वभाव £
मेरो तिह काठ मेरे पास, गुण जे अनन्त तेऊ सदा मोहिमाहीं §
है। ऐसो है स्थरूप मेरो तिह काल सुदरूप, ज्ञानदष्टि देखत न
दूजी परछाही €॥ ६॥
पिकट भीसिधु ताहि तरिवेको तारू कान, ताकी तुम तीर
आये देखो दृष्टि धरिक । अबके सभारेते पार भेले पहुँचत हां,
अवके सभारे पिन बृडत टो तरिके ॥ बटस्म फिर मिठमो नाहिं
पसो ह सयोग, देव गुरु ग्रथ करि आये हिय धरि क । तारि तू
विचारि निज आतमनिहारि ' भैया › धारि परमातमा शुद्ध
ध्यान करिक ॥ ७॥
जोप तोहि तरिवेकी इच्छा कछ भई फैया, तो ता बीतरा !
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गजूके बच उर धारिये । भाममुद्रनलटमे अनादि त वृडत द्य
जिननाम नाका मिरी चित्तं न टारिवे ॥ सेयं पिचारि श्ट
£ थिरतासों ध्यान काज, सुसके समूहको सुदृष्टिला निहारिये ।
8 चस्यिजो ह पथं मिलिये इयौ मारगम, जन्मजरामरनके ए
> भयको निरायिये 1 ८॥ ४
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