सहज सुख साधन | Sahaj Sukh Sadhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
530
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद - Brahmachari Shital Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उन महात्माओं ने इसो आत्माके शुद्ध स्वमाव का ध्यानकूप समस्यकचारिक्र
पाला । इसी रत्नत्रयमई आत्म-समाधि के द्वारा अपने को बरध रहित
मुक्त करके परमात्मपद में रथापित क्या। उन्ही तीर्थकरादि দান
बुएबे। के दिल्लाए हुए मार्ग पर उनके पश्चात् अनेक महात्मा अले और
अनेको ने उसी सार उपदेश को ग्रन्यो के भीतर स्थापित किया ।
अध्यात्ममय निश्चय धर्म के ग्रन्थ निर्माताओं मे श्री कुर्वकुन्वाचार्य
का नाम अति प्रसिद्ध है। उनके निर्मापित पचास्तिकाय, प्रवचनसार,
अष्ट-पाहुड आदि में श्री समयसार एक अपूर्व ग्रन्थ है, जो आत्मा को
आत्मारूप परसे भिन्न दिखाने को दर्पण के समान है। श्री कुन्दकुन्दाचार्य
के तीनो प्राभ्ती के टीकाकार श्री उप्रमुतचस्द्र आचाय बड़ ही आत्मज्ञानो
व न्यायपूर्ण सुन्दर लेखक हो गए है । श्री समयसार के अर्थ को खोलने
वाले जयपुर निवासी पद्चित जप्रउन्दओ हो गए हैं। उनकी आत्म-हयाति
नाम टीका आत्मतत्त्व कलकाने को अपूर्व उपकार करती है। कारजा
(बरार) निवासी श्रो सेवगण के विद्वान् भट्टा रक श्री वीरसेनह्काथ पमय-
सार के व्याह्यान करने को एक अद्वितीय महात्मा हैं। उनके पास एक
वर्षाकाल बिताकर मैंने समयस्तार आत्मख्याति का वाचन किया था। श्री
वोरसेनस्थामा के अर्थ प्रकाश से मुझ अल्प बुद्धि को विशेष लाभ पहुंचा
था। उसी के आश्रय से और भो जैत साहित्य के मनन करने से तथा
भोमद् राजयन्रजो के मुख्य शिष्य श्री लघुरानजो महाराज को पुनः
प्रणा से इस ग्रन्थ के लेखन में इस बात का उद्यम कया गया है कि श्री
तोर्थंकर प्रणीत जिन धर्म का कुछ बोध दर्शाया जावे व अनेक आचार्यों के
वाक्यों का सग्रह कर दिया जावे जिससे पाठकगण स्वाधीयत। को कु नी
को पाकर अपने ही अज्ञान के कपाटो को खोलकर अपने ही भीतर
परमात्मदेव का दर्शन कर सर्के ।
जो भव्य जीव इस ग्रत्थ को आदि से अस्त तक पढ़कर फिर उत्त
User Reviews
No Reviews | Add Yours...