सह्याद्रि की चट्टानें | Sahyadri Ki Chattanen

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Sahyadri Ki Chattanen by आचार्य चतुरसेन - Acharya Chatursen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झाहजो वडे भवसरवाटी ये! वे भ्रवसर कमी नही सूक्ते थे | इस समय उनका नाम इतना प्रसिद्ध हो गया था कि बाजापुर के झाटिलिश्ाह ने उनकी पूरी म्रावभगत वी। यह वह समय था जब फतहु्ला ने मुगल सेनापति महादतखाँ स मिलकर बीजापुर की राजघानी दोलता वाट पर चटाई की थी। शाहजी न इस गुदम बरी चौरतां प्रकट की । याद म जब वोजापुर और फतहलाँ म॒ रसाव हुई ता सब छत एक गत यह भी थी जि घाहजी को वीरता मे उपलस्य म पुरस्कार मित्र । फ्तहखाँ न दोजापुर से संधि होते हा मुगला पर घावा बोल त्याव। परन्‍्तु फतह्खाँ को मेंह को खानी पढो भौर महावत्खाँ ने उस बंद कर लिया । प्रहमटरंगर राय का मुगल साम्राज्य में विलय हां गया पव महावतखां ने यह योजना बनाई कि शाहजो को भी जीत लिया जाय तो बीजापुर भौर भ्रहमनगर नै दाना राज्यों पर मुगला का श्रधिवार हो जाय 1 उसने भवसर पाकर द्याहजा का पत्नी जोजाबाई झौर वालक वामा को पकड निया | परन्तु मराठा न उ् छुशक्र कोडाना दुग म मिजदा टिया इसी समय धागरेम साग्रागो मुमवाजमहल वा देदान्त हो गया भौर धाहजहाँ ताजमहल निर्माण म॑ व्यस्त हागया । इधर भव सर पाकर छाहजी ने भव दूसरा पतरा बटला। फतहलखाँ कद हो चुका था प्रौर उसन जो वाल्शाह्‌ ठस्‍्त पर घठाया था उस भी गिरफ्तार শট महावततवाँ न ग्वालियर के बियर में भेज त्या था। शाहजी न छत्तर प्रूमदनगर क शाटी खानटान के एक प्रत्प-ययस्कै बालक को प्रिहासन पर बठाकर उखका यग्याभिपक् मर न्वा भ्रौर पूनाहया चाष्णससर्कर वालापाट तक क॑ सारे प्रटेश तथा गुन्तुर के आस-पास का सारा निजामी इलाका छीन कर अपन भ्रषिकार म कर लिया स्‍प्ौर जुप्नर शहर को राजधानी वनाक्र उसी सुलतान के नाम पर धासन करना आरम्म कर दिया। शोजापुर राय में इस समम दो वततगाली सामन्त ये-- स्‍्ण्रल्लासाँ ६




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