बकुल - कथा | Bakul Katha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
78 MB
कुल पष्ठ :
414
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi
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हंसकुमार तिवारी - Hanskumar Tiwari
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लेकिन शम्पा एक दिन आप ही बुआ के पास क़बूल कर गयी; “कुछ प्रेम-
वेम न रहे, मेरे लिए कोई हा किये बैठा न रहे, मुझे देखकर धन्य न हो, यह
अच्छा नहीं लगता बुआ, समझी ? मंगर वास्तव में प्रेम में पड़, ऐसा लड़का
नहीं दिखता
जब “वास्तविक प्रेम” का प्रश्त ही नहीं, तो जैसे-तैसे में ही 'चाम खोजने
क्या नुक्रसान है ? और शम्पा एक भोंदू-जसे प्रोफ़सर के प्रेम में पड़ गयी।
प्रोफ़ेसर यद्यपि विवाहित था ।
“तो क्या हुआ ? शम्पा ने कहा, “मैं कुछ ब्याह तो करना नहीं चाहती
उससे ? उप्तको ज़रा बेवक़ फ़ बनाने की बात---” द
प्रोफ़ेतर को वेवक्रूफ बनाने के बाद कछ दिनों से कालेज-लाइबेरी के
लाइत्रेरियन छोकरे से चक्कर चल रहा है ।
अनामिका ने फिर एक बार लिखने में जी लगाने की चेष्टा की थी, कि
फ़ोन बज उठा । कोई ताज्ञा सप्रतिभ कण्ठ बोल उठा, “ज़रा शम्पा को बुला
दीजिए तो !”
बुला दिया ।
शम्पा ऊपर आयी ।
बोली, “बाप रे, तुम्हारे तिनतत्ले पर चढते-चढ़ते जान निकल आयी । देख,
फिर किसने बक-बक करने के लिए बुलाया !* यह लो, नीचे तुम्हारी एक
चिट्ठी पड़ी थी का ` `
टेबिल पर लिफ़ाफ़ा रखकर बुआ की ओर पीठ और दीवार की ओर मुंह
करके शम्पा रिसीवर को कान-मृंह से लगाकर खड़ी हो गयी । :
लिफ़ाफ़े को खोले बिना ही अनामिका देवी उसे हाथ से उलटने-पलटने
लगीं । संक्षली-दीकीचिद्री। | द
बहुत दिनों के बाद आयी है। सँझली-दी अब चिट्ठी-पत्री नहीं लिखतीं।
किन्तु अनामिका ही कितनी लिखती हैं ? अन्तिम चिट्ठी कब दी है, याद भी
नहीं आता । लेकिन रोज़-रोज कितनी तो चिट्ठटियाँ लिखती हैं। ढेरों । जिस-
तिसको | सेझली-दी बड़ी स्वाभिमानिनी है। बेगार टालनेवाली चिट्ठी नहीं
डे 1 हब का बकुल-कवा `
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