पर्यूषण - पर्व - महात्म्य | Paryushan Parv Mahatmya

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Paryushan Parv Mahatmya by पं. काशीनाथ जैन - Pt. Kashinath Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा प्रस्ताव । १९ यन चाहिये। कहते हैं, कि सम्वत्संरोके समय, चौमासीके समय और अट्ठाके समय सभी श्रावकोंको बड़े आद्रके साथ श्रीजिने- श्घरकी पूजा करते हुए उनके गुणोंका कीत्तेन करना चाहिये। जैसे पर्यु षण-पर्थके आठ द्नोंतक श्रोनन्दीश्वर दीपमें चेप्मानिक आदि चार निकायोंके देवता मिल-झ्ुर कर अट्टाईका महोत्सव करते हुए श्री जिनराज़की पूजा करते हैं, वेसेही तोन चौमाशखों की अहाई तथा चेत्र और आश्वनकी अटाः ये सब मिलकर पर्युषण सहित छः अद्टाईयोंमें तथा श्रोजिनेभ्वरके जन्म, दीक्षा और केवल शान-कल्याणकके दिन चार निकायोंके देव तथा विद्योघर नन्दश्च रादिककी याका करते भौर .मद्दोत्सव करते है । उसी प्रकार मनुष्य भी अपने अपने स्थानपर करते हैं । पर्युवर-पर्वमें जिनेश्वरकी पूजा करनेका फल । अन्थकर्सा कहते हैं, कि यदि में सागरोपम आदिकी सी लम्बी आयु पाऊँ और, सदा आधि-व्याधियोंसे परे रहूँ, कमो किसी रोगसे श्रस्ित न होऊँ, एकके बदले करोड़ों जिहाएँ पा जाऊं और वोलनेकी चतुराईमें अच्चछ नम्बरका होजाऊँ, तोमी सब पर्वामें श्रेष्ठ पयु षण-पवेमें पूजा करनेका जो फल है, उसका पूरा-पूरा वर्णन करनेमें समर्थ न हो सकूँगा। इस पर्वके अव- सरेपर (जा करनेसे सब दिन पूजा करनेका फल मिलता है। इस पयु षणके अवसरे पर जो लोग श्रीजिनराजकी निर्दोष पूजा करते हैं वे तीसरे, सातथें या आंठवें भवर्में अवश्यही मोक्ष पा जाते हैं। उनके अनन्त पाप दुर दो जाते हैं, वे तथाम




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