हरासंगार ( परिमल की कहानी संग्रह ) | Harsangaar ( Parimal Ki Kahani Sangrah)

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Harsangaar ( Parimal Ki Kahani Sangrah) by 'परिमल', प्रयाग - 'Parimal', Prayaag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ हरसिंगार ( ५ दलील वजनदार थी । दाईकोटं का फेसला था ¦ दावा मय खचं के स्वीकृत हो गया | रुः न= রা अनुराधापुर के रईस, सोनामाठी के पास के अपनी रियासत के गांव, गोलन डोह से शिकार करके लौठ रहे थे। नवात्र साहब के साथ, धारनीगढ़ के राजा शादूल सिंह, दो शिकारी, दो सरदार, और एक बुड़सवारों की टुकड़ी थी | जो मोहनपुर के. नाले से, सरकारी सवारी गुजर रही थी, तत्र बेलगाड़ियां के पास खड़े लोगों के छुएण्ड के बीच, एक गोरे से छोकड़े को उन्होंने अपनी सी, ठीक अपनी सी पाग वषे देवा | पाग का बांध वही था; जनक वही थी, पेच वेसे ही कसे थे, रंग भो वही था । रईस ने अपने सर से पाग उतारी ओर देखा | यह रईस की पाग थी, जो सरसे उतर रही थी। दोनों मिलाया ! दो पागें, एक भीड़ में खड़े किसी खूबसूरत उठाईगीरे की और दूसरी अपनी दोनों, आपस में, ग्रगर राई बढ़ती न थीं, तो तिल घठने के लिये भी तैयार न थीं। दुखती चोट, और अनहोना दुर्भाग्य मानों ऐसी चैनं है जो होकर रहें | जब रईस ने अपनी पाग उतारी तब भोला मुसकरा दिया। दो घंटे के बाद जिबह किये जाने वाले जानवर भी हरी घास को, बड़े स्वाद से खाते हैं । एक सिपाही घोड़े से उतरा। उसने नाले की घाठी पर चढ़ती हुई लगाड़ियों को रास्ते ही म॑ं ठहराया | उन सब्च गाड़ियों में तीन ऊपर चढ़ चुकी थीं। दो घाटी से फिसलकर नाले में वापस नीचे श्रा गिरी थीं । और दो अभी चढ़ी ही न थीं । अब इसके बाद से पंछ বাল शरू हुई । किस गांव की बारात है! अनुराधापुर की गरीब परखर !




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