समाज और जीवन | Samaj Aur Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.31 MB
कुल पष्ठ :
131
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नसुख और शान्ति दे
आदमी के मन-लगती कही पर इसमें ऐसा कोई बींन न मिला जिसे बोकर
आदमी सुख-फल की खेती आसानी से काट ढेता दे |
* आनन्द ' और वेदना :
कुछ ऋषियोंने बड़ी ऊँची उड़ान ली और उन्होंने एक नये शब्द
* आनन्द” की रचना कर डाली । इस दाब्द की तेज धारसे उन्होंने अनु-
कूल और प्रतिकूल दोनों बेदनाओं का ही सर काट कर फेंक दिया । यानी
सुख-दुग्ख दोनों को ही बेकार साबित कर दिया या निरी दुनियादारी की
चीज बना कर छोड दिया । अगर आनन्द शब्द का उत्था किया जाथ
तो बह होगा आत्म-वेदना और घरेलू बोली में घद्दी दोगा अपनी जानकारी ।
तो अब आनन्द रइ गया आत्मानद यानी अपने आप अपने आपे में मगन
रहना । और अगर वेंदना दाब्द से आप चिपके ही रहना चाहते हैं तो
आनन्द के माने दो जाते हैं अपने आप को जानते रहना और मगन
रहना । वास्तव मैं बात तो यह बडी गदरी हे और बड़े बड़े तकं-शास्ियें।
का मुँह अद कर सकती है, पर है कोरी कल्पना । हो सकता हे बिल्कुल
सच्ची दो । पर जे कहीं वह सच्ची मिलेगी वहाँ न हम होंगे न ठुम
और न यह दुनिया होगी । तब फिर ऐसी सचाई से हमें क्या लेना-देना ।
सुख-शांति की खोज :
आइये, अब आसमान से फिर भूतल पर आ जाइये और अपनी
सुख-दयान्ति से भट कीजिय । भला-बुरा जेसा भी सुख इस दुनिया में है
और भली-बुरी जेसी भी शान्ति यहाँ मिलती है उसीसे हमें काम पड़ेगा
सौर उसीको पाकर हमें तस्ली होगी और चैन पड़ेगा । फिर उसी की बात
क्यों न करे १ आइये, आर उसी की खोज करें और पता लगाएँ. कि वह
कहाँ रदती दे और कहाँ अपने आप भा जाती है ? और क्यों अपने आप
चली जाती है ? व सिनेमा के फिल्म के चित्रों की तरद निरी छाया ही
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