समाज और जीवन | Samaj Aur Jeevan

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Samaj Aur Jeevan by जमनालाल जैन - Jamnalal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नसुख और शान्ति दे आदमी के मन-लगती कही पर इसमें ऐसा कोई बींन न मिला जिसे बोकर आदमी सुख-फल की खेती आसानी से काट ढेता दे | * आनन्द ' और वेदना : कुछ ऋषियोंने बड़ी ऊँची उड़ान ली और उन्होंने एक नये शब्द * आनन्द” की रचना कर डाली । इस दाब्द की तेज धारसे उन्होंने अनु- कूल और प्रतिकूल दोनों बेदनाओं का ही सर काट कर फेंक दिया । यानी सुख-दुग्ख दोनों को ही बेकार साबित कर दिया या निरी दुनियादारी की चीज बना कर छोड दिया । अगर आनन्द शब्द का उत्था किया जाथ तो बह होगा आत्म-वेदना और घरेलू बोली में घद्दी दोगा अपनी जानकारी । तो अब आनन्द रइ गया आत्मानद यानी अपने आप अपने आपे में मगन रहना । और अगर वेंदना दाब्द से आप चिपके ही रहना चाहते हैं तो आनन्द के माने दो जाते हैं अपने आप को जानते रहना और मगन रहना । वास्तव मैं बात तो यह बडी गदरी हे और बड़े बड़े तकं-शास्ियें। का मुँह अद कर सकती है, पर है कोरी कल्पना । हो सकता हे बिल्कुल सच्ची दो । पर जे कहीं वह सच्ची मिलेगी वहाँ न हम होंगे न ठुम और न यह दुनिया होगी । तब फिर ऐसी सचाई से हमें क्या लेना-देना । सुख-शांति की खोज : आइये, अब आसमान से फिर भूतल पर आ जाइये और अपनी सुख-दयान्ति से भट कीजिय । भला-बुरा जेसा भी सुख इस दुनिया में है और भली-बुरी जेसी भी शान्ति यहाँ मिलती है उसीसे हमें काम पड़ेगा सौर उसीको पाकर हमें तस्ली होगी और चैन पड़ेगा । फिर उसी की बात क्यों न करे १ आइये, आर उसी की खोज करें और पता लगाएँ. कि वह कहाँ रदती दे और कहाँ अपने आप भा जाती है ? और क्यों अपने आप चली जाती है ? व सिनेमा के फिल्म के चित्रों की तरद निरी छाया ही




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