कसाय पाहुडं | Kasay Pahudam

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Kasay Pahudam by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७) दो छथासठ सागरप्रमाण है सो इसका खुलासा अनुस्कृषके समान कर लेना चाहिये | अनन्तानुबन्धी चतुप्ककी अजधन्य प्रदेशविभक्तिके तीन विकल्प होते हैं--अनादि-अनन्त, अनादि-सान्त और सादि-सान्त । इनमैंसे प्रारम्भके दो विकल्पोंका खुलासा सुगस है । अब रहा सादि-सास्त विकल्प सो इसका जघन्य काल अन्‍्तमुहूर्त हे ओर उत्कृष्ट काल कुछ कभ अर्थ पुद्गल परिवत नप्रमाण हे, क्योंकि विसंयाजनाके बाद इसकी संयाजना हानेपर इसका कमसे कम्त अन्तमुहत कालतक और अधिकसे अधिक कुछकम अधंपुद्गल परिवतन काल तक सत्त्व पाया जाता है। लोभसंज्वलनकी अजधन्य प्रदेशविभक्तिके भी उक्त तीन विकल्प जानने चाहिये। मात्र इसके सादि-सान्त बिकल्पका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुद्त ही प्राप्त होता है, क्योकि जघन्य प्रदेशविभक्ति हानेके बाद इसका अन्तमह्ृरते कालतक ही सच्त्व देखा जाता है। कालकी अपेक्षा मूल ओर उत्तर प्रकृतियोंकी यह ओघ प्ररूपगा है। गति आदि मार्गगाओंमं अपनी अपनी विशेपताकों जानकर कालका विचार इसी प्रकार कर लेना चाहिय । अन्तर--एक बार मोहनीयकी उत्क्रष्ट प्रदेशविभक्ति हानके बाद पुनः वह अनन्त काल बाद ही प्राप्त होती है, इसलिए सामान्यसे मॉदनीयकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कट अन्तरकाल अनन्तकाल हैं। अथवा परिणामाकी सग्यतासे उसका जघन्य अस्तर- काल असंख्य,न लीकप्रमाण भी बन जाता है। तथा उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जवन्य और उत्कृष्ट काल ७क समय है, ठसलिर इसकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य ओर उत्कृष्ट अन्तर एक समय ह। इसी प्रकार मिथ्यात्व, मध्यकी आठ कऋपाय और पुरुपवंदक सिवा आठ नोकपायोंके विपयमें घटित कर लेना चाहिए। अनन्तानुबन्वीचतुप्का अन्तरका तसम्बन्धी सब कथन उक्तप्रमाण ही है দহ विसंवाजना प्रकृति होनेमे इसकी अनुस्कृए प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छुवासठ सागरप्रमाण भी वन जाता है, इसलिए इतनी विशेषताका अलगसे निर्देश किया है। शय सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेराविमक्ति क्षगणाके समय दाती है इसलिए उनकी उत्कृष्ट प्रदेशविर्भाक्तका अन्तरकाल नहीं प्राप्त हाता । मात्र सम्यकत्व ओर सम्यस्मिभ्यात्व थे दोनों उद्देलना प्रकृतियाँ है, इसलिए इनकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अब पुगद्ल परिबतेनप्रमाण बन जानेसे वह उक्त कालप्रमाण है। तथा पुरुपवेद ओर चार संज्वलन इनकी उत्कृष्ट प्रदेशविर्भाक्त एक समयके लिए हाती हे, इसलिए इनकी अनुल्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य ओर उत्कृष्ट अन्तर एक समय है । समान्यसे माहनीयकी जघन्य प्रदेशविभक्ति द्सव गुणस्थानके अन्तिम समयमं प्राप्त होती है, इसलिए इसको जथन्य ओर अरजवन्य प्रदेशविभक्तिके अन्तरकालका निर्षेव किया है। इसी प्रकार मिथ्यात्व, ग्यारह कपाय ओर नो नोकपायोके विपयमें जान लेना चाहिए, क्‍योंकि इनकी क्षपणाके अन्तिम समयम ही जपन्य प्रदेशविभक्ति प्राप्त हाती है । सम्पक्त्व आर सम्यस्मिथ्यात्व ये उद्वलना प्रकृतियाँ हैं, इसलिए इनको अजपघन्य प्रदेशविभक्तिका जब्न्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अधेपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण वन जानेसे वह उक्त प्रमाण है। अनन्तानुबन्धी- चतुष्क विसंयाजना प्रकृतियाँ हैं, इसलिए इनकी अज्बन्य प्रदेशविभक्तिका जबन्य अन्तर अन्तमुहूर्त ओर उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छथासठ सागर वन जानेसे वह उक्त प्रमाण है | लाभसंज्वलन की जपन्य प्रदेशवि्भाक्त एक समयमात्र हाकर भी अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है, इसलिए इसकी अजधन्य प्रदेशविभक्तिका जधघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। तथा सम्यक्त्वादि इन सब प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभ्भाक्ति क्षपणाक्र समय ही द्वाती है, इसलिए




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