उपवास चिकित्सा | Upavas Chikitsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नियमोका उैघन “करनेवाले या दौड़नेवालेको थोड़ी देरतक आराम करने दीजिए । उसका हाँफना कुछ कम दो जायगा और उसका दर्दे जाता रहेगा । इसका कारण यहीं है कि उसके दुषित अद चाहर निकालनेवाठे अवयवोंको कुछ आराम मिला टै और वे अपना कार्प्य अच्छी तरदद करने छगे हैं । शरीरमें एकत्र हुए विषके वाहर निक- ते ही उसका दर्द भी कम हो जाता है । इससे यह वात अच्छी तरह सिद्ध हो जाती है कि किसी प्रकारका अधिक परिश्रम करनेके उपरान्त शर्रीरके सिन्न 'मिनन अगेमिं जो दोप या विकार उत्पन हो जाति हैं, उनके दूर करनेके लिए उन अवयवों या अंगोको आराम देना चाहिए, कुछ समय तक उनसे कोई नया काम न लेना चाहिए । यह सिद्धान्त ससारके सभी कामों और सभी समान-रूपसे प्रयुक्त ह्वोता है । मनुष्य, पशु, पक्षी, नदियों, वनस्पतियाँ और वृक्ष आदितक आराम चाहते और करते है । जिस चीजसे बहुत अधिक और निरंतर काम ल्या जाता है, वह बहुत जल्दी नष-श्रष्ट हों जाती है और जिसे वीच वीचमें अवकाश मिलता रहता है, वह अपनी पूरी आयुतक पहुँचती और अपरं कार्य्य उत्तमतापूर्वक करती है । निय्मोंका उछघन 1 झकूरप्य है तो जीव-मात्रमें सबसे अधिक श्रेष्ठ, पर उसके कास और आच- रण वहुधा पशुअंकि कामों और आचरणोसे भी गये-वीतेि होते हैं । इस उच्नति और सम्यताके जमानेमें तो उसके निन्‍्दनीय आचरण और भी बढ़ते जाते हैं । हम लोग औराके साथ जो अन्याय करते हैं वदद तो करते ही हैं। हमारा सबसे बड़ा अन्याय स्वय अपने साथ-अपने शरीरके साथ-होता है । हमारा यद अन्याय इतना पुराना और बढ़ा चढ़ा हे कि उसका बहुत अधिक अभ्यास हो जानेके कारण दम उसे अन्याय ही नहीं समझते । दम न तो अपने शरीर और व्को देखते हैं और न हमें उनकी रक्षा और वृद्धिको ध्यान रहता है । आप किसी वद्र या चकरीको मास या अफीम खिलानेका अयल्न कीजिए, आपको कभी सफलता न होगी, पर अपने आपको समझदार कहनेवाले वहुतसे ऐसे मनुष्य मिलेंगे जो इनसे भी निकट पदार्थोको प्राप्त करनेमे अपनी ओरसे कोई कसर न छोडेंगे । जो मनुष्य




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