जयपुर ( खानिया ) तत्त्वचर्चा | Jaipur ( Khaniya ) Tattvcharcha

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Jaipur ( Khaniya ) Tattvcharcha by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शंका ६ और उसका समाधान ३८१ १. केवछ उपादात फारणसे हो कार्य होता है यह भिथ्या है, क्योंकि इसके समर्थनमे शास्त्रीय प्रमाणोंका अमाव है । २. कार्यके समय केवल उपस्थितिमात्रसे कोई निमित्त कारण हो सकता है यह मिथ्या है, क्योंकि इसके सम्थनमे शास्त्रीय प्रमाणोका अभाव ह । ३. कार्यकी उत्पत्ति सामग्रीसे ही अर्थात्‌ उपांदान और निमित्त कारणसे ही होती है, यह অমীন্বীল है, क्योंकि शास्त्र इसका समर्थन करते हैं । मूलशंका ६ उपादनकी कारयरूप परिणतिमें निमित्त कारण सहायक है या नहीं ? प्रतिशंका २ का समाधान समाधान--इस शंकाके उत्तरमे यह बतलाया गया था कि जब उपादान कार्यरूपसे परिणत होता है तब उसके अनुकूल विवज्षित द्रब्यकी पर्याय निर्ित्त होतो है। इसकी पुष्टिम श्लोकवातिकका पुष्ट प्रमाण उपस्थित किया गया था, जिसमें बतलाया गया था कि “निदचयनयसे देखा जाए तो प्रत्येक कार्यको उत्पत्ति विख्रसा होती हैँ और व्यवहार नयसे विचार करने पर उत्पादादिक सहेतुक प्रतीत होते है ।' बिन्‍्तु इस आगम प्रमाणकों ध्यानमे न रख कर यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया गया है कि कार्यकी उत्पत्ति निमित्तसे होती है। उपादन जो कार्यका मूल हेतु ( मुख्य हेतु-निशचय हेतु ) है उसको गौण कर दिया गया है । आगमम प्रमाण दृष्टि विचार करते हुए सर्वत्र कार्यकी उत्पत्ति उभय निमित्तते बतलाई गई है। आगममे ऐसा एक भी प्रमाण उपलब्ध नहीं होता जिससे यह सिद्ध किया जा सके कि उपादान ( निश्चय ) हेतु अभावमे केवल निमित्तके बलसे कार्यको उत्पत्ति हौ जात्ती है । पता नहो, जव जसे निमित्त मिलते है तब वेमा कायं होता ह, एेसे कथनमे निमित्तकी प्रधानतासे कार्यको उत्पत्ति मानने पर उपादानका क्या अर्थं किया जाता हैं। कार्यं उपत्तिमे केवल इतना मान लेना ही पर्याप्त नही है कि गेहुँसे ही गेहुँके अंकुर भआादिकी उर्त्पत्ति होती है । प्रश्न यह है कि अपनी विवक्षित उपादानकी भूमिकाको प्राप्त हुए विना केवल निर्मित्तके बलसे हो कोई गरेहु अंक्रुरादिरूपसे परिणत हो जाता है या जब गेहुं अपनी विवज्षित उपादानकी भूमिकाकों प्राप्त होता है तभी वह गेहुँके अंकुरादिरूपसे परिणत होता है। आचायोने तो यह स्पष्ट शब्दोमे स्वीकार किया हैं कि जब कोई भी द्रव्य अपने विवक्लित कार्यके सन्‍्मुख होता है तमी अनुकूल अन्य द्रव्योकी पर्यायें उसकी उत्पत्तिम निमित्तमात्र होती हैँ । निष्क्रिय द्रव्योमे क्रियाके बिना, और सक्रिय द्र॒व्योमे क्रियाके माध्यम बिना जो द्रव्य अपनी पर्यायों द्वारा निमित्त होती है वहां तो इस तथ्यकों स्वीकार ही किया गया है, किन्तु जो द्रव्य अपनी पर्यायों द्वारा क्रियाके माध्यमसे निमित्त होती हैं वहाँ भी इस तथ्यकों स्वोकार किया गया हैं । श्री राजवातिकजी में कहा है--- यथा मुदः स्वयमस्तघटभवनपरिणामाभिसुख्ये दण्ड-चक्र-पौरुषेयप्रयस्नादि निर्मित्तमात्र भवति ।




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