मूर्ख - मंडली | Murkh - Mandali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अंक--पहला दृश्य १५ श्याम०-- छड़ी घुमाते-- मोहन०--सूछों पर ताव देते-- भसगवान्र०--दागा की ग़ज़ल गाते-- गंगा०--धीरे-धीरे भुस्किरते फिरते हयो । श्याम०--फिर ब्याह का क्‍या काम है ९ गंगा८--ऐसा कोरा संठपना तो बहुत कम देखा जाता है ! भगवान ०--यह रोग तो पहले तुम्हारे न था । गोपाक्न०--रोग काहे फा ९ भगवान ०--रोग ? बड़ा भारी रोग है। भत्ता; बताओ तो भगवती बांबू, यह एक रोग नहीं है ? भगवती ०--ाँ--सो--यह एक रोग तो है ही, 2870 2॥ (लोकपा १८०१८्द्‌ मे इसका नाम 2006789 [২72010718 लिखा दै । बड़ी विचित्र बीमारी है। ज्याह होते ही अच्छी हो जाती है | होमियोपैथी में इसकी एक बढ़ी अच्छी दबा है । चस्र रामबाण है। ह श्याम०--हाँ जी भगवती; तुम 175811707६ तो करो | भगवती०--अर्भी को । क्‍यों स्राहब, रात को नींद पड़ती है ९ गोपाल०--पड़ती नहीं तो क्‍या * अगवती०--खमयथ पर समान से करने से क्या आपके हाथ- यैर भन्न करने लगते हैं ? शोपाक्ष०--हाँ, कुछ कुछ ।




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