मूर्ख - मंडली | Murkh - Mandali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अंक--पहला दृश्य १५
श्याम०-- छड़ी घुमाते--
मोहन०--सूछों पर ताव देते--
भसगवान्र०--दागा की ग़ज़ल गाते--
गंगा०--धीरे-धीरे भुस्किरते फिरते हयो ।
श्याम०--फिर ब्याह का क्या काम है ९
गंगा८--ऐसा कोरा संठपना तो बहुत कम देखा जाता है !
भगवान ०--यह रोग तो पहले तुम्हारे न था ।
गोपाक्न०--रोग काहे फा ९
भगवान ०--रोग ? बड़ा भारी रोग है। भत्ता; बताओ तो
भगवती बांबू, यह एक रोग नहीं है ?
भगवती ०--ाँ--सो--यह एक रोग तो है ही, 2870 2॥
(लोकपा १८०१८्द् मे इसका नाम 2006789 [২72010718
लिखा दै । बड़ी विचित्र बीमारी है। ज्याह होते ही अच्छी हो
जाती है | होमियोपैथी में इसकी एक बढ़ी अच्छी दबा है ।
चस्र रामबाण है। ह
श्याम०--हाँ जी भगवती; तुम 175811707६ तो करो |
भगवती०--अर्भी को । क्यों स्राहब, रात को नींद
पड़ती है ९
गोपाल०--पड़ती नहीं तो क्या *
अगवती०--खमयथ पर समान से करने से क्या आपके हाथ-
यैर भन्न करने लगते हैं ?
शोपाक्ष०--हाँ, कुछ कुछ ।
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