आधुनिक हिन्दी निबंध | Aadhunika Hindi Nibandh

Aadhunika Hindi Nibandh by सुरेशचन्द्र गुप्त - Sureshchand Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवबस्थ का स्वरूप प्र + निबन्व उस गद्य-रचना को कहते हैं जिसमें किसी एक सीसित श्राकार के भौतर किसी विषय का वर्णन या घ्रतिगादन एक विशेष निजीपन स्वच्छता सौष्ठव श्रौर सजीवता तथा श्रावश्यक संगीत भ्ौर सम्बद्धता के साथ कियाः युलाबराय उपयुक्त परिभाषाश्रों का अध्ययन करने पर हम कह सकते है कि निबस्घ से हमारा तात्पर्य उस कलापूरण गद्य-कृति से है जिसमें किसी सामाजिक राजनीतिक साहित्यिक तथा इसी प्रकार की किसी अ्रन्य विचारधारा को व्यवितगत दृष्टिकोण से स्पष्ट रूप में प्रतिपादित किया गया हो श्र इस प्रकार जो श्रपने संक्षिप्त ग्राकार में स्वयं सम्पूर्ण हो । वास्तव में पाठक तिबन्ध का अ्रध्ययन इस उद्देश्य से करता है कि उसे कुछ मौलिक विचारों की प्राप्ति हो। श्रतः विषय की मौलिक चर्चा से शून्य निवन्ध का निस्वय ही कोई महत्त्व नहीं है । निबस्ध-लेखक की सफलता इस बात में है कि वह अ्रपने निबन्ध में गम्भीर विचारों का करके भी श्रपनी लैली को गम्भीर न होने दे । निबस्ध-रचना के विषय जिस प्रकार साहित्य के अन्य भ्रज्लों को किसी विद्ेष विषय तक ही सीसित नहीं रखा जा सकता उसी प्रकार निबन्ध भी पुर्णत निबन्ध है । निबन्थ-रचना के लिए हम समाज राजनीति साहित्य धर्म दर्शनशास्त्र और इसी प्रकार अन्य श्रनेक क्षेत्रों में से किसी भी क्षेत्र से विषय चुन सकते हैं । विषय चुनते समय उसकी गम्भीरता भ्रथवा उसमें निहित व्यंग्य आदि का निर्वाह करना लेखक की ग्रपनी इच्छा पर निभंर रहता है । तथापि किपी भी श्रेष्ठ निबन्व की रचना के लिए यह हैं कि उसमें भावों अथवा विचारों की संगत संगठन श्रौर एकसुत्रता पर पुरा ध्यान दिया जाय । इसी प्रकार जिन निबन्धों में श्रत्यधिक जटिल समस्याग्रों की चर्चा न की गई हो उनमें पाठक रोचकता श्र विशेष कुशलता के समावेश को भी देखना चाहता है । निबन्ध-दौली निब्ध-लेखन श्रौर निबन्ध का अध्ययन दोनों ही शुष्क कार्य हैं । भरत निबन्ध लेखक का कर्तव्य हैं कि वह अपनी भला को स्वाभाविक श्रौर सरस




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