आचार्य विनोबा भावे | Aachaary Vinobaa Bhaave

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Aachaary Vinobaa Bhaave by आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह बात ध्यान देने योग्य है कि 'भूदान! का अथे है अपनी इच्छा से भूमि का दान अर्थात्‌ दूसरों के साथ मिलकर उसका उपयोग करना । यह दूसरों को इस भावना से दी जाती है कि देने वाले के पास जो वस्तु है उसका उपयोग दूसरों के साथ मिलकर किया जा सकता है ओर किया जाना चाहिये । कुछ लोगों का यह तके है कि भूमि के इस प्रकार के विभाजन से इस देश की ज़मीन ओर भी छोटे-छोटे टुकड़ों में वँट जायगी । उन्हें डर है इसका हमारी खेती की उपज पर बुरा प्रभाव पड़ेगा । विनोबा जी का कहना यह है--ज़मीन के टुकड़ों में बँट जाने की अपेक्षा लोगों के दिलों में फूट पड़ जाने पर ख़तरे का डर अधिक है । छोटे-छोटे जमीन के टुकड़ों को आपसी सदभावना ओर सहयोग से फिर एकत्रित किया जा सकता है परन्तु आर्थिक असमानता के कारण दिलों में पड़ी फूट के तो बहुत भयंकर परिणाम हो सकते हैं।” इसलिये सच्चे प्रेम और बलिदान की भावना द्वारा बे कटुता को दूर करना चाहते है | विनोबा जी की सम्मति है कि भारत जेसे घनी अबादी वाले उपमहाद्वीय में छोटे परिमाण में की जाने वाली खेती का प्रयोग ही अधिक ठीक है। भूमि की चकबन्दी करने की अपेक्षा खेती के जोतने, बोने ओर काटने जैसे बड़े-बड़े कामों में सहकारी प्रणाली के प्रयोग किये जाने की ओर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये । दूसरे शब्दों में सामू।हिक स॑युक्त क्पि व्यवस्था के स्थान पर हमें सहकारी प्रणाली द्वारा की जाने वाली अधिक अच्छी खेती! को प्रोत्साहन देना चाहिये । भूमिददीन मज़दूरों में बेकारी की कम करने के लिए तथा ज़मीन के लिए उनकी उचित मांग को पूरा करने के लिए बड़े परिमाण में भूमि का फिर से बेंटवारा किया লালা आवश्यक दै । विनोवा जी का भूदान-यज्ञ बगेर मुआवजा दिये सदूभावना के साथ धनी जमींदारों द्वारा ग़रीब किसानों को ज़मीन दिये जाने के लिए उचित वातावरण का निर्माण कर रहा है । इस यज्ञ का प्रभाव बहुत व्यापक होगा । विनोबा जी का आन्दोलन इतिहास में असन के विरुद्ध सत्‌ की, दिसा के विरुद्ध अहिंसा की तथा थागलपन, घृणा ओर विनाश के शारि पूः ९ 4 गं का एक न प्रति शान्तिपूणे रचनाव्मक शक्तियों की इस बड़ी लड़ाई का एक सीमाचिन्ह बनकर रहेगा। शायद विनोबा जी अपने भूदान आन्दोलन द्वारा जीवन में प्रचलित मान्यताओं में एक परिवर्तन ला रहे हैं। जिन लोगों ने उनका काय देखा है और उस भावना का अनुभव किया है जो इस सब के मूल में है, उन्हें विनोवा जी के आन्दोलन के क्रान्तिकारी रूप के विपय में जरा भी शंका नहीं हो सकती | वे सदा इस विचार का प्रचार करते हैं कि भूमि को अपनी सम्पत्ति मान बेठना गलत है, वह भी हवा और पानी की तरह सबके लिए है । जिस प्रकार समाज के प्रयोग के लिए पानी की व्यवस्था की जाती है इसी प्रकार भूमि का भी समाज के भले के लिये उपयोग होना चाहिये । सारी सम्पत्ति का समाज १७




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