हिमालय की गोद में | Himalaya Ki God Main

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Book Image : हिमालय की गोद में  - Himalaya Ki God Main

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ & | कत्राण की आगा देश-देशान्तर में अधिकाधिक विश्वास का रूप धारण करती जा रही है। तेलंगाना के पश्चात्‌ अन्य प्रान्तों में होते हुए वाबा का विहार में शुभागमन हुआ और वे गया पधारे | हम छोगों की भी उनसे मिलने की चिर अभिलाषा पूणे हद । कुछ समय पश्चात्‌ सर्वोदय-सम्मेलन की तैयारी हुईं और उसके लिए गया को ही चुने जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसी अवसर पर भूपजी ने अपनी बकाइत और गैरमजरूआ खास की सम्पूर्ण भूमि अर्पित कर दी, जो पॉच हजार एकड़ से कुछ अधिक थी । इसके पूवे उन्होंने इस विषय में हम छोगों की सम्मति भी जाननी चाही | भूदान की स्तुति तो इनसे अनेक बार सुनी जा चुकी थी, अतः विरोध किसे होता ? घर की कौसिल में स्वेसम्भति से यह प्रस्ताव पास हो गया । जमींदारी पहले ही जा चुकी थी, अब जो जमीन वची थी, वह भी समाज को अर्पित हो गयी । किन्तु इसमें जो एक अदूभुत आनन्द छिपा था, उसे तो भोक्ता ही जान सकता है। माताजी (श्री जानकीदेवी बजाज) ने जब यह सुना, जो उस समय गया मँ थी ओर कूपदान के कायं मेँ संरून थीं, तो उन्हें कुछ चिन्ता हुई और वे बावा से कने लगी कि भूप वावू ने आपको अपनी सब जमीन दे दी, तो अब उनका क्या होगा । यह सुनकर बाबा मौन थे और भूप बाबू मुस्करा रहे थे। यह भी एक संयोग ही था कि बिहार में बावा का आगमन उस समय हुआ था, जब जमींदारी-उन्मूलन हुए कुछ ही समय हुआ था। उसके परिणामस्वरूप अधिकांश छोटे जमींदारों की दशा अपने ही घरों में शरणाथियों जैत्ती हो रही थी।




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