कुम्भीपाक | Kumbhipak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३
सदर दरवाजे से आगे बढ़ते ही वाई तरफ एक बडा कमरा था । वह
हमेशा बन्द रहता था | कमरे के ऊपर चौवारा सपरैलो से छवाया हुआ ।
अन्दर पिछले चार महीने से जो परिवार टिका था उसमे तीन प्राणी थे ।
एक अधेड औरत, एक अठारह साला छोकरी, और एक अधेड़ भर्द ।
महिला को ल्यूकोरिया हो गया था, बड़े अस्पताल में चिकित्सा चल
रही थी । लडकी परिचर्या के लिए साथ श्राई थी। मर्द चार-छ रोज
दिखाई पड़ता फिर हफ्ता-भर के लिए कहीं चला जाता ।
बीमार थी, सो बुझा होती थी 1 लडकी भतीजी ।
कम्पाउण्डर की बीवी नई-नवेली तो थी ही, वेहद चुलबुली तबीयत
कीथी।
अक्मर दुपहर को, जब मर्दे अपने-अपने धरे मे निकल जाते, कम्पा-
उण्डर की बीवी उस छोकरी के साथ गगा जाती थी--क्ृष्णाघाट । उम्र
, मेचार-छ सालका ही अन्तर था एक को दूसरी के दिल में घुसने के
लिए ज्यादा कसरत नहीं करनी पड ।
पते ही वक्त एक बार कम्पाउण्डर की बीवी ने उस छोकरी से
पूछ लिया, तुभसे पहले बुझा जी के साथ जो रहने श्राई थी, कौन थी
मुवन ?”
“हमारे तीसरे चाचा की लडकी थी, भुवनेसरी ने जवाव दिया और
युआ की चोली में साथुन रगडती रही | क्षण-मभर वादही जाने क्या वाते
दिमाग में आई कि उलटकर पूछ बैठी, “क्यों जीजी, अभी वह क्यो याद
आई?
इस पर मुस्कराती रही कम्पाउण्डर की बीवी, कुछ वोनी सही ।
भुवन को इस पर् दाक हरा । लगा कि यह भरत कोई सूराख पा गई
है उनके गोरखघंधे की 1
सावुत वाला हाथ उठाकर भुवन बोली, “उसका माथा ठीक नहीं
कुमीपाक / १७
User Reviews
No Reviews | Add Yours...