मोक्षमार्गप्रकाशक | Mockshmarg Prakashak

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Mockshmarg Prakashak  by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ धर्मके लोभी अन्य जीवा युच्वकनिकं देखि रागजंशके उदयते करुणाबुद्धि दोय तो तिनिकै धर्मोपदेश देते हैँ । जे दीक्षामाहक हैं तिनकों दीक्षा देते हैं जे अपने दोष प्रगट करे हैं तिनकौं प्रायश्चित्त विधिकरि शुद्ध करे हैं । ऐसें आचार अचरावनवाले आचार्य तिनकों हमारा नमस्कार होहु | बहुरि जे बहुत जैन- शाखनिके ज्ञाता होय संघविषे पठन पाठनके अधिकारी भये हैं बहुरि जे समस्त शाख्रनिका प्रयोजनभूत अर्थ जानि एकाग्न होय अपने खरूपकों ध्यावे हैं | अर जो कदाचित्‌ कषाय अंश- उदयतें तहां उपयोग नाहीं थंभे है तो तिन शाखनिकों आप पढ़े हैं वा अन्य धर्मबुद्धीनिको पढ़ावे हैं। ऐसें समीपवर्ताी भव्यनिको अध्ययन करावनहारे उपाध्याय तिनिकों हमारा नमस्कार होहु। वहुरि इन दोय पदवीधारक विना अन्य समस्त जे मुनिपदके धारक हैं बहुरि जे आत्मखभावकों साथे हैं । जेस अपना उपयोग परद्वव्यनिविषे इष्ट अनिष्टपनों मानि फसे नाहीं वा भागे नाहीं तेसें उपयोगको सधाव हैं । बहुरि बाह्यताके साधनभूत तपश्चरण आदि क्रियानिविषे प्रवर्त्त हैं वा कदाचित्‌ भक्तिवंदनादि कार्यनि- विषे प्रवर्ते हैं ।ऐसे आत्मखभावके साधक साधु हैं तिनकों हमारा नमस्कार होहु । ऐसें इन अरहंतादिकनिका खरूप है सो वीतराग विज्ञानमय है। तिसहीकरि अरहंतादिक स्तुति योग्य महान भये हैं तातें जीव तत्त्वकरि तो सर्व जीव समान हैं; परंतु रागादिक विकारनिकरि वा ज्ञानकी हीनताकरि जीव निंदा योग्य हो हैं। बहुरि रागादिककी हीनताकरि वा ज्ञानकी विशेषताकरि खुति योग्य हो हैं। सो अरहंत सिद्धनिके तो संपूर्ण रागादिककी




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