आत्म - कथा | Aatma-katha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शैशव [५
दिया | भेंगे कहा-में मद्ठा नहीं पीता | पिताजीन कहा- पी तो
सही, अब यह दूध हो गया है| मैंने पिया और चकित होकर
पिताजी से पूछा, “मद्य दूध कैसे हो गया पिताजी वेले गर्म
करने से । उस दिन से में समझने छगा कि मद्ठा गरम करने स
दूध वन जाता है। यह वज्ञानिक अन्ध-विश्वास कब नष्ट हुआ
इसका स्मरण नहीं है ।
उन दिनों गाँबों में शक्कर का कम प्रचार था और मेरे गरीब
घर में तो और भी कम, इस लिये मेरे घर में गुड़ का ही उपयोग
होता था | पर गुड़ मुझे अच्छा न छूगता था इसलिये ग्रायः गुड़
न खाता था | एक दिन माँ ন कहा--क्यों रे, गुरआई दूं ? मैंने
यह सोचकर “हाँ” कह दिया कि गुरआई गुड़ से भिन्न कोई दूसरी
चीज़ होगी | मुझे क्या माव्ठम कि गुरआई यह सामान्य शब्द है जे।
कि गुड शक्तर आदि सभी मीठी चीज़ों के लिये प्रयुक्त होता
है | इसलिये माँ ने जब गुड परोसा तब यह सामान्य-विरेष-
तत्व मेरी समझ में न आनेसे में मौचक्का सा रह गया ।
৬৩
एकवार भने मौ स क्हाकि मुझे खेलने . के लिये छुपालिया
( छोठा सूपा ) मँगादे | मैँनि पिताजी से कहा--बसारिन को
कोई पुराना कपड़ा देकर सुपलिया बनवा छाना। दो तीन दिन
बाद सुपलिया आ गई । मुझे बड़ा आश्रय हुआ कि कपड़े की
सुपलिया कैसे बन गई £ कपड़े के बदले में सुपलिया आ गई है
यह बात में न समझ सका। में तो यही समझता रहा कि कपड़े की
सुपलिया बन गई है ।
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