मध्यकालीन हिन्दी कवयित्रियाँ | Madhyakalin Hindi Kavayitriyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नेथम अध्याय विषय प्रवेश साहित्य रचना के लिए श्रावइयक सूजन श्रौर निर्माण शक्ति की चिभूति ले नारों पुरुष की तुलना में काव्य के श्रधिक निकट श्राती है । भावनाओं की कोसलता श्र श्रमिव्यक्ति की कलात्मकंता, दोनों ही नारी स्वभाव के प्रबल पक्ष हैं । जहाँ बाक्ति झौर दासन प्रिय पुरुष ने झधिकार, संघर्ष और भौतिक सफलताओं में ही जीवन का मूल्यांकन किया, वहाँ स्त्री ने समपंखण, सेवा झ्ौर त्याग में श्रपने जीवन की सार्थकता मानी । स्थूल तथ्य के प्रति उसका सोह उतना न था. जितना सुक्ष्म भावना के प्रति । इतिहास के श्रारम्भ के वे पृष्ठ, जहाँ शारीरिक दाक्ति का प्राबल्य नहीं है, हम स्त्री के सबल सामस की एक भऋलक देख सकते हूं । स्त्रियों के द्वारा रचित ऋग्वेद की ऋचाएं, पुरुषों द्वारा बनाई हुई कविताओं से किसी भी प्रकार कम नहीं हूं । परन्तु श्रनुभूति श्र भावनाशओं की प्रतिमूति होते हुए भी, सृजन की प्रतीक होते हुए भी भारतीय नारी साहित्य सुजन में प्रधान तो क्या यथेष्ट भाग भी न ले सकी । हिन्दी के पु के भारतीय साहित्य में कई ज्योतिमंय तारिकाओं का शआ्रालोक दृष्टिगत होता है । बेदिक झर संस्कृत साहित्य में विइपला, घोषा, नितम्बा, गार्गी, मेत्रेयी इत्यादि नारियों की रचनाओं की उपेक्षा करना असब्भव है । पाली साहित्य में भी बौद्ध भिक्षुरिययों के विरागपुर्ण गीतों में उनका नेराइय फूट पड़ा है । उनके वे उद्गार इतने सामिक श्रौर कलापुर्ण हूं कि कुछ विद्वानों की शंका हूं कि ये रचनाएं स्त्रियों द्वारा रचित हैं भी या नहीं । इन छन्दों में साहित्यिक झ्भिरुचि तथा चरम भावना और कलात्सकता स्त्रियों के सीमित जीवन में कंसे आरा सकती हू ? पर थेरियों के हृदय से निकले इन उद्गारों की श्रेष्ठता देखकर ही उन्हें उनका न मानना अन्याय होगा । भावनाएं काव्य की आत्मा हूं । जीवन के उन उद्दीप्त क्षणों में जब केवल भावनाओं का ही प्राधान्य रहता हु, कला झौर साहित्य के ज्ञान की श्राव- इयकता नहीं रह जाती; श्रनुभूतियां स्वयं ही कला बन जाती हूं श्रौर वहीं कला सच्ची भी होती हूँ । थेरी काव्य का जो संकलन 'थेरो गाथा' के नास से प्रकादित हुभ्रा है, उसमें लगभग ६० थेरियों की रचनाएं संकलित है । इनमें संकलित श्रम्बपाली की




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