हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास | Hindi Sahitya Ka Subodh Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नौ झ्रादि-काल श्ट् भिन्‍्यज्ञना की गयी ई- यह ब्त्थ. हिन्दी का प्रथम महाकब्य माना जता हैं, किन्ठ रामायण, मद्दाभारव श्रादि में जो जातीय, भावों का उदूघाठन दिखाई देता है, वह इसमें नहीं हैं. 1 इस ग्रन्थ में कल्पना की उडान श्र .उक्तियों की चमत्कारिता का झ्च्छा परिचय सिलता हैं । दस अन्य में द€. समय श्यर्वात्‌ श्व्याय है | इसमें छुप्पय; कवित्त, दूहा तदोमर, चोटक,; गाद्दा और श्रार्या छन्दों का प्राचुर्य पाया जाता है | दस अ्रन्थ की कथा चन्द की दूसरी ख्री गौरी से कही गयी थी | इस अन्य के रचयिता श्री चन्दवरदाई (सं० २९२४५-१२४६) माने जातें ई | ये महाकवि भट्ट लाति के झन्तर्गत्त जंगात गोत्र के ये । से दिल्ली के अन्तिम हिन्दू सम्राट महाराज शथ्वीराज-के सखा, सामन्त् और राजकवि थे । कहा जाता है कि ध्रृथ्वी राज श्रौर इनका, जन्म एक डी तिथि को हुश्रा था श्रीर सृत्यु मी एक ही तिथि को हुई। इस प्रकार पृथ्वीराज के साथ इन्होंने पूर्ण मित्रता निभाई । ऐसा कद्दा जाता दै कि जब मद्दाराज प्रथ्वीराज राजनी पकड़ कर से जाये गये तो कुछ दिनों बाद चन्द भी वहाँ पधारे । प्रथ्वी राज चन्द के इशारे पर शहाबुद्दीन को शब्द मेदी वाण से मार कर स्वयं चन्द के हाथ से मर गये तथा उसी समय चन्द ने दपना भी प्ाणास्त क्र लिया । कार्दम्बरी के रच- थिता बाण की मॉति दनको भी श्रपने अन्थ का श्रपूर्ण माग अपने पु जश्न को सींपना पढ़ा था । इसका उल्लेख रासो में इस यका र दाता है -- “पुस्तक जलन इत्य दे, चलि गज़न प काज , 'परृथ्वीराज रासों में श्रथिकुल के श्षुत्रियों की उत्पत्ति से लेकर प्रथ्वी- राज के पकड़ें जाने तक का संविस्तार'वर्णन है | सुप्रस्यात इतिंहासवेन्ता ' 'रायवद्दादुर सा दिव्यवाचस्यति स्वर्गीय श्री गों रीशक्वर ही राचन्द श्रोका ने काइ्मीरी कवि जयानक के “पृथ्वीराज विजय” नामक.अन्थ के शधार पर रासो में वर्णित -घटनाओओं की सत्यता में सन्देह प्रकट किया दै | “उनके मत से .रासो एक जाली अन्थ-है जो पीछे से चन्द नाम -के.आन्य




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