भट्ट निबंधावली भाग-2 | Bhatt Nibandhavali Bhah-2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बोध मनोयोग ओर युक्ति १५
सेन्स) के पक्षपाती हैं वे कहते हैं; किसी वस्तु के विचार में बहुंत-सा
तक॑-वितक व्यथ है केवल साधारण ज्ञान के द्वारा काय करना चाहिये |
उन लोगों का यह भी मत है कि साधारण ज्ञान बिना विचार के
उत्पन्न होता है अर्थात् ऐसा ज्ञान मन का एक स्वाभाविक धमे है।
हमारे देश मे उसे साधारण ज्ञान न कह, समभाना, जी मे बैठना,
मालूम पड़ना इत्यादि शब्दों का प्रयोग उसके लिये करते हैं। साधारण
शान सदा सत्य नहीं होता कितने ऐसे विषय हैँ जिनकी युक्ति साधारण
शान के भीतर नही आती ओऔर जिसका विचार करने को हमारा
साधारण जन खमथ भी नही है | बहुधा द्वेष-बुद्धि ईर्ष्या इत्यादि के
कारण मिथ्या होती है इसलिये जिसे समझना कहेंगे उसमे आधा
साधारण जान रहता दै शरोर राधा द्वेष आदि के कारण मिथ्या बोध
है| उत्कृष्ट वोध, साधारण ज्ञान ओर सर्वोत्कृष्ट थुक्ति तीनो से उनका
समभना रहित दता है । भारत कै कुदिन तभी से श्राये जव से लोगो
मे ऐसी उमर का प्रचार हुआ | वेद के समय अव ब्राह्मणो का यहाँ
पूरा आधिपत्य रहा ऊपर लिखी हुई तीनों बाते उत्कृष्ट बोध, साधारण
ज्ञान, सर्वोत्कृष्ट युक्ति, श्रच्छी तरह प्रचलित थीं, अब केवल सखम
शेष रदी
शेप में अब हम यह कहां चाहते हैं कि युक्ति ओर उत्कृष्ट बोध
दोनों की चेष्टा हम करना चाहिए बिना बोध (फीलिंग) कोई साधारण
काय भी नहीं सिद्ध हो सकता और बिना युक्ति के सत्य-विचार मन में
नहीं झा सकता इसलिये अपनी उन्नति चाहने वाले को दोनों का मनो-
वाक् काय से सदा सेवन करना चाहिये | परन्तु पहले युक्ति द्वारा
सिद्ध कर लें कि यह काम उपकारी है तव अपनी अभिरुचि प्रकाश
करे । धीरे-धीरे उस कामके करने मे एक प्रकार का बोध पैदा हो
जायगा तव उसके करने में उत्साह बढेंगा। इसी बोध के बढ़ने से
स्वाधीनता प्रिय लूयर मे केयोलिकां के अत्याचार से समस्त यूरोप को
चचा रकसा शोर वाशिंगटन ने अमेरिका का स्वच्छन्द कर दिया |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...