गोरक्षपद्वति | Gorkshtrapandati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाषान॒वादसदिता-श० १॥ १२
वहता हुआ वायु स्थिर होता ই ८ । नवम श्ुद्रघंरिकाधार कंडमूल
है, इसमें जो दों लिगाकार ऊपरसे लटकती हे उनतक निहा पहेँ-
चवे नो अहारंध्रम चंद्रमंडलसे बहता हुआ अम्गृतरस मिलता है ९ ।
दशम जिह्ामूलाधार इसमें, खचरीमृट्राके प्रकारसे जिह्बाग्रंस मथन
करे तो खेचरीसिद्वि होती है १० । ग्यारहवां जिह्वाका अधोमागा-
थार, जिसमें जिह्माग्से मथन करके दिव्यकविताशक्ति होती है
११ । बारहवां ऊध्वंदंत मुलाधार, जिसमे जिहात्रस्थापनके अभ्या-
ससे गेगशांति होती है १२ । तेरहवां नासिकाग्राधार, जिसमें टरष्टि
स्थिर करनसे मन स्थिर होता है १३ । चौोदहवां नासिकामूलाधार,
जिसमें दृष्टि स्थिर करनेसे छः महीनेके निरंतर अभ्यासकरके ज्योति
प्रत्यक्ष होती है १४ । पंद्रहवां भ्रूमध्याधार, जिसमे दृष्टि अचल
दृष्टिके अभ्यास करके रूयेकिरणोक समान ज्योति प्रकाश होती है
इसी अभ्यासके चट होनेपर सयाकारामं मनका ख्य होता दै
१५ । सोलहवां नेत्राधार, जिनके मूलम अंगुलीसे मीचतेमें बतुला-
कार बिंदुसमान इंद्रधनुषके समान रंगकी ज्योति है इस ज्योतिकं
देखनका अभ्यास करके ज्योति प्रत्यक्ष होती है १६ । ये सोलह
आधार हैं अथवा मूलाधार १ स्वाधिष्ठान २ मणिप्र ३२ अनाहत ४
विशुद्ध ५ आज्ञाचक्र ६ विदु ७ अद्धदु ८ गिनी ९ नाद १०
नादात ११ राक्तं १२ व्यापका १२ হালনা १४ राधना १५
घुवमंडल १६ ये मोलह ५ १६ ) आधार हैं. 'बरह्म तथा अप-
नेम अभेद समझकर भावना करनेसे सीद्धि होती है. अब दो लक्ष्य
कहते है ये दो प्रकार बाह्य आमभ्यंतर्रय हैं दखनेके उपयोगी
नासिका तथा भअ्रमध्य इत्यादि बाह्यलक्ष्य है, मूलाघारचक्र, हृदयक-
सेल इत्यादि आभ्यंतर लक्ष्य हैं. अथ पांच आकाश इस प्रकार
हैं कि प्रथम श्वेतवर्ण ज्योतिरूप आकाश है इसके भीतर रक्तवर्ण |
ज्योतिरूप अकाश है इसके भीतर धृम्नवण ज्योतिरूप महाकाश है
इसके भीतर नीलवर्ण ज्योतिस्वरूप तत्त्ताकाश है, इसके भीतर विदत् !
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