महाबंधो (महधवाल सिद्धान्त शास्त्र खंड-3) | Mahabando (mahadhaval Siddhanta Shastra Vol-iii)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
514
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)` . डक््केस्ससंत्थाणंबंधसण्णियासपरूषणा._.॒.. ४
सिया बं७ सिया अब॑ं ० -। यदि वँ० ते तु० | अधिर-अंसुभ-अजस ० सिया वं७ सिंया
अंबं० | यदि ब० णिय० अणु० दुभागूणं वंधंदि । एवं देवाणुपु० |
,' - 8. एइंदियस्स उक्क०ट्विदिवँ्ध ० .. तिरिक्खग०-ओरालि०-तेजा०-क ०-हु'ड्स०
'बणण०४-तिरिक्खाणु ०-अगु ० ४-थावर-वादर--पज्जत्त-पत्ते ०-अधथिरादिपंच ०-शिएमि ०
सिय० वबं० | ते तु०।. आदाउज्जो० सिया वँ० सिया अव॑०-] यदि बं० | त॑ तु० |
एवं आदाव-थावर ० । ।
` १.०, वीईंदि० “उक्क०द्विदिवं० . 'तिरिव्खग०-ओरालि०-तेजा ०-क् ०-ह'ढड०- «_
ओरालि«अंगों ०-असंपत्त 5-वएण ० ४-तिरिक्खाशु ०-अग्रु ०-उप ०-तस ०-बादर-पत्ते ०- _
_अधिरादिपंच ०-णिमि० णिय्र० व॑०. । अणुं० संखेज्जदिभागूणं. वंधदि |: पर०७-
' उस्सा०-उज्जों >-अप्पसत्थ ०-पज्ज ७ -अपज्ज ०-हस्सर सिया -बँ० | तं तुर
। १८ পাপা ~^ ^^ ^
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- श्रसंख्यातवां भाग न्यूनतक बाधता है। स्थिर, शुभ और यशःकीति इस .प्रकृतियोंका :
, कदायित वन्धक होता है श्रोर कदाचित् श्रवन्धक् होता हैः । यदि चन्धक होतादहै तो चह
'. उत्कृष्ट स्थितिका भी वन््धक होता हैं और अनुत्छए स्थितिका भी वन्धक होता है | यदि
` श्रतं स्थितिका बन्धक . होता है तो नियमसे. डत्कश्से अलुत्कफ एकसमय न्यूनसे
. लेकर पठ्यका शअरसंख्यातवां भाग ` न्युनतक बाघता है। अंस्थिर, अशुभ ओर अयशः-
` कीर्ति इन प्रकृतिर्योका। कदाचित्. वन्धक होता है शरोर कद्+चिद् अवन्यक होता है 1 यदि
चन्धुक होता ই লী লিখি আন্ত दो भाग न्युनकौ बन्धक होता हैं। इसी प्रकार
` देवरंत्यानुपूर्वीके आश्रयसे सन्निकर्प जाननां चाहिए। .
९, एक्ेन्द्रिय जातिंकी उत्छृष्ट स्थितिका वन्ध करनेवाला जीव तिर्य॑श्वगति, ओदारिक
' शरीर, तेजस शरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान; वर्ण॑चतुष्क, , तियश्वगत्याजुपूर्वी,
--श्रगुखुलघु चतुष्क, स्थावर, चादर, पर्याप्त, प्रत्येकः शरीर, अस्थिर बादि पांच श्रोर
- निर्माएं इन प्रकृत्ियोंका मनियमसे बन्धक होता है।. किन्तु वह उत्कृष्ट स्थितिका भी
चन्धक -होता है ओर अनुत्कष्ट स्थितिका भी वन्धक होता है 1 यदि. प्रनुत्छरएट स्थितिका
`, चन्धक होता है' तो चह नियमले उत्कछसे अ्ुत्कूट ' एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका
असंख्यातवाँ भाग न्यून तक वॉँयता है। आतप और उद्योत इन परकृतियोंको कदाचित्त्
- बन्धक होता है ओर कदाचित् अवन्धक होता है। यदि वन्धक होता है तो बह ट्छ ._
स्थितिका भी वन्धक होता है ओर अलुत्कृष्ट स्थितिका भी वन््धक होता है। यदि अन्ु- `
त्कष्ट स्थितिका वनन््धक होता हैं तो वह नियमसे उत्कृ्टसे अजुत्कूट एक समय न्यूनसे लेकर
पल्यका अखंख्यातवां भाग न््यूनतक वाॉधता है। इसी प्रकार आतप ओर स्थावर पङ्क
- , तिके -श्राध्रयसे सचलिक्छपं जनिना चादहिपः 1
| १०.. दीन्दिय. जात्तिकी उत्कृष्ट स्थितिका वन्ध करनेवाला जीच तिर्यञ्चगतिः श्रद्! रिक
` शरीर, तैजस शरीर, कार्मण . शरीर, दुण्डसंस्थान, ओदारिक ्राज्ञोपाज्ग, श्रसमस्प्राप्ाखपाटिका
संहनन, चर्णचत॒प्के, तिर्यश्वगत्यानुपूर्ची, अंगुरुलघु, उपधात, चस, चादर, बत्येक, अस्थिर
आदि पच ओर :निर्माण ছল प्रकृतियोंका सियससे बन्धक होता है। জী সং
संख्यातवाँ भाग हीन स्थितिका वन्धक होता है। परचघांत, डच्छास, उद्योत, अप्रशस्तबि
.. हायोगति, पर्याप्त, अपर्याप्त, और डुश्खर, इन प्रकृतियोंका कदाचित् ` बन्धक होतों
` है और कदालित् अवन्धक होता है। किन्तु यदि वन्धक होता है तो उत्कृएट स्थितिका भी
: - चन््चक होता है और अलनुत्छ्ट स्थितिका भी वन््धक होता है। यदि _ यनुत्छष्ट स्थितिका
। मूलमतौ पज० दुस्सर श्रपन ० साघार° सिचा. दति पाटः 1 ` २. मूतग्रतौतं त्त ছা ভু লিষা
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