कृष्णकुमारी नाटक | Krishnakumari Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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| ঘর
| कोई नाव्यलीला दिखाऊँ, पर कौन सा नाटक खेलूं
, यद्दौ विचार कर रहा हूं।
|| ते--नाथ ! बहुत से अद्भुत नाटक, झद्गभागर, हास्य करुणा
बोर, अद्भुत, भवानक द्॒त्यादि रस से, तथा समाज
{ संशोधन, देशहितेपिता भारतदुदंशाप्रदर्शन गुणों से
भृषित हैं, चाहे जो खेलिये सव में सैं विख्यात हूं।
« ध्ृ०--प्रिये ! नाटक तो सभी हैं परन्तु ऐसे २ गुण्णियों को
रिफ्ानेवाला नाटक तो अभी तक मेरे मन में कोई न
ক জন্বা।
ग्रे--प्राणेश ! नाटक के रसिकों के न होने से बहुत दिनों
से जो नाटक नहीं खेला गया इस्से क्या आप भूल गये?
शकुन्तला, भारतजननो, नोलदेवौ, भारतदुरदश्णा इत्यादि
सभो तो एक से एक उत्तम भरे पड़े हैं।
। 1०--हां ठोक है परन्तु ये विदज्जन, र।सलोला इन्द्रसभा
पारसोलोला लैलोमजन , गुलवकावलो तथा भारतजननी
, इत्यादि नाटकों से क्या प्रसन्न होंगे ? जेसे भ्रमर नित्य
नद २ सुमनवासना का रसिक होता है तेसेहो विद्दत्जन
नित्य नई २ कलाचातुरो के अनुरागों होते हैं
सो प्रिये ! इन्दः कोई नूतन नाटक जो देणहितैषिता
इत्यादि गुणं से भूषित हो दिखाना चादिये ।
| दो--नाथ ! यदि अपराध क्षमा हो तो कुछ निवेदन
1 करू ।
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