गीता - प्रवचन | Gita - Pravachan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला भ्र्याय ७
नही ह कि जिसे बडा समकर ग्रहण करे व छोटा समभकरे छोड दे ।
वस्तुत वह् न बडा होता है, न छोटा । वह हमारे न्यौत भरका होता है ।
श्रेयान् स्वधर्मो विगुण ' इस गीता-वचनमे धर्मं शन्दका श्र्थं हिदू-घमं,
इस्लाम, ईसाई-धर्म आदि जैसा नहीं हैं । प्रत्येक व्यक्तिका अपना भिन्न-
भिन्न धर्म है। मेरे सामने यहा जो दो सौ व्यक्ति मौजूद हैं उनके दो सौ
धर है । मेरा धर्म भी जो दस वर्ष पहले था वह आज नही है । श्राजका
दस वर्ष बाद नहीं रहनेका | चितन और अनुभवसे जैसे-जेसे वृत्तिया
बदलती जाती हे, वैसे-वंसे पहलेका धर्म छुटता जाता हैं व नवीन धर्म
प्राप्न होता जाता है । हठ पकडकर बु भी नही करना ह ।
दूसरेका धर्म भले ही श्रेष्ठ मालूम हो, उसे ग्रहण करनेमे मेरा
कल्याण नहीं है । सूर्यका प्रकाश मुझे प्रिय है । उस प्रकाशसे में बढता
रहता हू । सूर्य मुझे बदनीय भी है । परतु इसलिए यदि में पृथ्यीपर रहना
छोडकर उसके पास जाना चाहगा तो जलकर खाक हो रहुगा । इसके
विपरीत भने ही पृथ्वीपर रहना विगुण हो, सूर्यंके सामने पृथ्वी बिलकूल
तुच्छ हो, बह स्वय-पकाग न हो, तो भी जवतक सूर्यके तेजको सहन करने
का सामर्थ्यं मुभमे न प्राजाय तब तक सूर्यस दूर पृथ्वी पर रहकर ही
मू श्रपना विकास करलेनाहोगा । मछलियोको यदि कोई कहे कि
'पानीसे दूध कीमती है, तुम दूधमे रहने चलो, तो क्या मछलिया
उसे मजूर करेगी ? मछलिया तो पानीमे ही जी सकती है, दूधमे मर
जायगी ।
दूसरेका धर्म सरल मालूम हो तो भी उसे ग्रहण नहीं करना है ।
बहुत बार सरलता ग्राभासमात्र ही होती है । धर-गृहस्थीमें ब[ल-बच्चोंकी
ठीक सभाल नही की जाती, इसलिए ऊबकर यदि कोई गृहस्य सन्यास
ले ले तो वह ढोग होगा व भारी भी पडेगा । मौका पाते ही उसकी वासनाए
जोर पकडेगी । ससारका बोझ उठाया नही जाता, इसलिए जगलमें जाने
वाना पहले वहा छोटी-सी कूटिया बनावेगा । फिर उसकी रक्षाके लिए
बाड लगवेगा । एसा करते-करते वहा भी उसे सवाया ससार खड़ा करनेकी
नौबत आजायगी । यदि सचमुच मनमे वैराग्यवृत्ति हो तो फिर सन्यासभी
कौन कटिन बतत है । सन्यासक ्रासान बनानेवाले स्मृति-बचन तो हैं
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