भोजन और स्वास्थ्य पर महात्मा गांधी के प्रयोग | Bhojan Or Swasthaya Par Mahatma Gandhi Ke Prayog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्सशाष्मा याँघो के झचौय | श्र अवस्था थी, वैसी अवस्था करुणाजनक दोती है। श्रौर यदि अम्मीरता के साथ उस पर चघिचार करे तो वह श्वस्था श्धिक पापपूर्ण ्नौर घिक्कार योग्य मालूम दोगोीं 1 मनुष्य न ठो खाने के लिए पैदा हुआ है थऔर न यद्द खाने के लिप जीदा दी है। वदिश चद्द झपने उत्पन्न करनेवाले को यहचानने के लिए उन्पन्न हुझ्ा है श्र वद्द इसी धाम के लिए 'जींवा हैं । यह पदचान शरीर की सद्दायता के बिना नहीं -सकती 1 श्रौर खुराक के बिना शरीर का निर्वाद नद्दीं दो सकता 1 इसीलिए इमकों खाने की झ्ावश्यकर्ता है। दमारे जीवन कीं यद्द वदुद ऊँची मीर्माजं दे । स्नी-पुरुपों के लिए इदना विचार काप्ती है । नास्तिक मी मानते हैं दि इमें जीदिंठ रददने दे लिए उतना दी भोजन करना चाहिए, इंजितने से दम स्वस्थ शरीर नोयोग रद्द सके 1 पशु-पश्षियों को देखिये; वे स्वाद के लिए नहीं स्वाते! वे झ्ंख ठूख कर सोजन ले पेट को नददीं भरते | भूख लगने पर दो वे भूख मर लाये है । वें झपना भोजन पकाते नहीं हैं, अकृति के चनाये शऔर तैयार किये हुए पदार्थाी को खा कर: खुखी हो जाते हैं । क्या मदुष्य दी स्वाद के लिए पैदा इुभ्ा हैं ? उन शाववसों में गरीव श्रौर श्मीर--कोई-कोई दिन में दस वार खानेवाले, झ्ौर कोई-कोई पक वार भी न पानेदाले, नद्दीं संेखाई देते । ये चारतें केवल मनुष्य जाति में ही हैं । फिर थी इमें जानवरों से झधिक बुद्धिमान दोने का घमंड है | इससे दोता है कि यदि इम पेट को परमेश्वर मानकर उसकी




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