भोजन और स्वास्थ्य पर महात्मा गांधी के प्रयोग | Bhojan Or Swasthaya Par Mahatma Gandhi Ke Prayog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.87 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न्सशाष्मा याँघो के झचौय | श्र
अवस्था थी, वैसी अवस्था करुणाजनक दोती है। श्रौर यदि
अम्मीरता के साथ उस पर चघिचार करे तो वह श्वस्था
श्धिक पापपूर्ण ्नौर घिक्कार योग्य मालूम दोगोीं 1
मनुष्य न ठो खाने के लिए पैदा हुआ है थऔर न यद्द खाने
के लिप जीदा दी है। वदिश चद्द झपने उत्पन्न करनेवाले को
यहचानने के लिए उन्पन्न हुझ्ा है श्र वद्द इसी धाम के लिए
'जींवा हैं । यह पदचान शरीर की सद्दायता के बिना नहीं
-सकती 1 श्रौर खुराक के बिना शरीर का निर्वाद नद्दीं दो
सकता 1 इसीलिए इमकों खाने की झ्ावश्यकर्ता है। दमारे
जीवन कीं यद्द वदुद ऊँची मीर्माजं दे । स्नी-पुरुपों
के लिए इदना विचार काप्ती है । नास्तिक मी मानते हैं दि
इमें जीदिंठ रददने दे लिए उतना दी भोजन करना चाहिए,
इंजितने से दम स्वस्थ शरीर नोयोग रद्द सके 1
पशु-पश्षियों को देखिये; वे स्वाद के लिए नहीं स्वाते!
वे झ्ंख ठूख कर सोजन ले पेट को नददीं भरते | भूख लगने
पर दो वे भूख मर लाये है । वें झपना भोजन पकाते नहीं हैं,
अकृति के चनाये शऔर तैयार किये हुए पदार्थाी को खा कर: खुखी
हो जाते हैं । क्या मदुष्य दी स्वाद के लिए पैदा इुभ्ा हैं ? उन
शाववसों में गरीव श्रौर श्मीर--कोई-कोई दिन में दस वार
खानेवाले, झ्ौर कोई-कोई पक वार भी न पानेदाले, नद्दीं
संेखाई देते । ये चारतें केवल मनुष्य जाति में ही हैं । फिर थी
इमें जानवरों से झधिक बुद्धिमान दोने का घमंड है | इससे
दोता है कि यदि इम पेट को परमेश्वर मानकर उसकी
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