मध्ययुगीन काव्य - साधना | Madhya Yougin Kabya Sadhana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मव्ययुगीन काव्य-सा घना ओर जागीरदार नी करने ल्‍गे। मुगल बादशाहोका अन्त पुर अपने आपमे छोटा-मोया परियोका नगर हआ करता था । यह सान्दर्य राशि देशऊे कोने- জীন ভুরি कुटनियो एव चठ॒र-चाकरोके अथक ग्रयत्नके परिणामस्वरूप एकत्र हो पाती थी। जब अकबर जेसे सजग ज्ासकके हरमसे ५,००० नारी रत्न दिन-रात जगमगाते रहते ये! तो जहॉगीर आर जाहजहोंके लिए तो कुछ कहना ही व्यर्थ है। मरने बहुत दिनोतक यह लीला देखनेके बाद ल्खि होगा--- ध्ज्यो दूती प्र वधू भोरि क ठे पर पुरुप दिखाबै” और केशवने अपनी बारह पीढियोका अनुभव वयोरकर काव्य-विषयोकी चर्चा करते हुए राज्यश्रीके प्रसगमे स्म्वा होगा कि-- आखेटक जस्केलि, पुनि, विग्ह स्वययर जानि भूषित सुरतादिफनि करि, राज्यश्र हि बरवानिः ॥ राया रानी, राज सुन, प्राहिन दरूपति दून । मन्त्रौ, मन्त्र, पयान, हय, गय, शग्राम अभूत्‌ ॥ ८५. राजा कैसामी क्यों न हो, काव्य-जगतूमे वह दृटपतिन, पुण्यात्मा, धार्मिक, प्रतापी प्रसिद्ध, शतुनागक; चन्छ्विवेक युक्त, कपाट, दानी, सत्यवादी, धीर, उन्रमी ओर क्षमानिधान ही हुआ करता थाः | किन्तु असलियत कर्टोतक छिपती | ऐसे राजा भी अपना बहुत-सा समय कमलमुखी सुन्दरियोके साथ जलक्रोडाम जलचरोके समान प्रदत्त होकर व्यतीत करते थे। नारी-रत्नोको रसिक नागरिकोकी विल्यस-क्रीडा-बत्तिके अनुकूल सज्ञित करनेके लिए सखियों और दूतियोकी आवश्य कता हुई। धाय, दासी, नाइन, नटी, पडोसिन, मालिन, तमोलिन, चितेरिन मनिद्ारिन, सुनारिन, गोसाइन, सन्यासिन ओर पटवाइन इस महान्‌ कार्यके 4100 200৩08] 02160, ০0056666502. 0७0७ क 15211 1५४७ 1९६५ ঢ20 855 100032120 ज़ण्रद्या तज़ढ पापा ६16 ७०11६ 270 ९३८1 01 00010 180 3 9609.266 209107605 44200? 17016 ८0; 14 0417, 1958 (ठय + 870, 99 261 | २. कवि प्रिया, आठवाँ प्रभाव, पृष्ठ ११६। २. वही 2 छन्द रे, ४, ছু ২৫




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