मध्ययुगीन काव्य - साधना | Madhya Yougin Kabya Sadhana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मव्ययुगीन काव्य-सा घना
ओर जागीरदार नी करने ल्गे। मुगल बादशाहोका अन्त पुर अपने आपमे
छोटा-मोया परियोका नगर हआ करता था । यह सान्दर्य राशि देशऊे कोने-
জীন ভুরি कुटनियो एव चठ॒र-चाकरोके अथक ग्रयत्नके परिणामस्वरूप एकत्र
हो पाती थी। जब अकबर जेसे सजग ज्ासकके हरमसे ५,००० नारी रत्न
दिन-रात जगमगाते रहते ये! तो जहॉगीर आर जाहजहोंके लिए तो कुछ कहना
ही व्यर्थ है। मरने बहुत दिनोतक यह लीला देखनेके बाद ल्खि होगा---
ध्ज्यो दूती प्र वधू भोरि क ठे पर पुरुप दिखाबै” और केशवने अपनी
बारह पीढियोका अनुभव वयोरकर काव्य-विषयोकी चर्चा करते हुए राज्यश्रीके
प्रसगमे स्म्वा होगा कि--
आखेटक जस्केलि, पुनि, विग्ह स्वययर जानि
भूषित सुरतादिफनि करि, राज्यश्र हि बरवानिः ॥
राया रानी, राज सुन, प्राहिन दरूपति दून ।
मन्त्रौ, मन्त्र, पयान, हय, गय, शग्राम अभूत् ॥
८५.
राजा कैसामी क्यों न हो, काव्य-जगतूमे वह दृटपतिन, पुण्यात्मा, धार्मिक, प्रतापी
प्रसिद्ध, शतुनागक; चन्छ्विवेक युक्त, कपाट, दानी, सत्यवादी, धीर, उन्रमी
ओर क्षमानिधान ही हुआ करता थाः | किन्तु असलियत कर्टोतक छिपती |
ऐसे राजा भी अपना बहुत-सा समय कमलमुखी सुन्दरियोके साथ जलक्रोडाम
जलचरोके समान प्रदत्त होकर व्यतीत करते थे। नारी-रत्नोको रसिक नागरिकोकी
विल्यस-क्रीडा-बत्तिके अनुकूल सज्ञित करनेके लिए सखियों और दूतियोकी आवश्य
कता हुई। धाय, दासी, नाइन, नटी, पडोसिन, मालिन, तमोलिन, चितेरिन
मनिद्ारिन, सुनारिन, गोसाइन, सन्यासिन ओर पटवाइन इस महान् कार्यके
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(ठय + 870, 99 261 |
२. कवि प्रिया, आठवाँ प्रभाव, पृष्ठ ११६।
२. वही 2 छन्द रे, ४, ছু ২৫
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