हज़रत मोहम्मद और इस्लाम | Hajrat Mohammed Or Islam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वम्भरनाथ शर्मा - Vishvambharnath Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अरवों का रदन सहन ७
बरसों उसकी क़त्र के आस पास संडराती रहती है, और
“ओरस्कूनी ! ओस्कूनी !” चिल्लाती रदती है, जिसका मतलव
है---“मुमे पीने को दो ! मुझे पीने को दो ! और जब
तक मारने वाले कान उसे पीने को खून मिले और हत्या
का वदलान लिया जवे, तव तक वह इसी तरह चिल्लाती
रहती है। इसी लिये अपने क़बीले के किसी आदमी या किसी
पुरखे की हत्या का बदला लेना हर अरब अपना धर्म
सममता था ।
इन घरेलू लड़ाइयो में जो मद औरत या वच्चे क्रेद कर लिये
जाते थे वे गुलामों की तरह रखे जाते थे। गुलामों के साथ इन
लोगों का सलक वहुत ही घुरा था। जानवरों की तरह वाज्ञारों
मे वह वेच जाते ये ! किसो गुलाम को मार डालने की कहीं कोई
सज़ा न थी। गुलाम ओरतों को अकसर नाचना गाना सिखाया
जाता था और फिर उनके साथ चाज़ारी ओरतों खा तदि
होता था और कभी कभी इनका मालिक उनसे पेशा करा कर
पैसा कमाता था।
ऐसी हालत में अलग अलग कबीलो मे प्रेम, मेल या
एके की आस करना ओर भी कठिन था ।
ओरतो के साथ तब के अरबो का वर्ताव बहुत सराब था।
पुराने राजपूतो की तरह उस ज़माने के अरब किसी को ऋपना
दामाद मानना, या लड़की का वाप होना अपन लिये बहुत बड़ी
शर्म की बात समभने थे। लड़कियों को जिन्दा মাত ইন জা
User Reviews
Zuber
at 2019-11-06 18:28:25