सहकारिता | Sahakarita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| सहकारिता की कल्पना १५ की थी कि सरकार को सहकारी आन्दोलन को प्राणवान बताने के लिए आथिक और अन्य प्रकार से उसके साथ अपना सम्बन्ध ज्यादा गहरा करता चाहिए। उसके बाद समिति के उससे सम्बन्ध रखनेवाले प्रस्तावों को सरकार ने मोटे तौर पर भन्‍्जुर कर लिया और उन्तपर बराबर अमल किया जा रहा है। अब मै आपके सामने एक हकीकत मंजुर करना चाहता हु । मेरा खयाल है कि सरकार ने प्राम ऋण सर्वेक्षण समिति के कुछ फैसलों को मानकर बहुत अच्छा नही किया। मुझे इसका अफसोस है। उसके लिए दूसरों की तरह मै भी उतना ही जिम्मेदार हूं। जितना ही मैने इस बारे में सोचा है, उतना ही मैने' महसूस किया है कि कुछ मामलो सें ग्राम ऋण सर्वेक्षण ससित्ति का दृष्टिकोण सही नही था गौर वह्‌ देश के सहकारी आन्दोलन को गर्त दिका में धकेलने में सहायक हुआ । यह गरूत दिशा क्या थी ? समिति ने हमारे लोगों को अविश्वास की निगाह से देखने, की कोशिश की। उसने सोचा कि उनमे योग्यता की कमी है ओर वे खुद किसी काम को नही कर सकते, इसलिए सरकारी अफसरो को मदद देने के लिए आगे आना चाहिए) सरकारी धन उनकी मदद करे। अगर सरकारी घन आयगा तो उसके पीछे सरकारी अफसर भौ आयगे । च्रुकि छोटी सहकारी सस्थाओं के पास काफ़ो रुपया ओर कार्यक्षम तकनीकी कर्मचारी नही होते, इसलिए बडे सहकारी सगठन होने चाहिएं, जिनकी सरकार शुरुआत ओर मदद कर सके । अब मै यह मानता हूं कि यह हृष्टिकोण गलत था, भले ही उसके पक्ष मे कुछ दलील




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