विश्व - संस्कृति का विकास | Vishva Sankirit Ka Vikash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। [ ९९1 अपना रंग चढ़ाया । यूनानी देवी-देवताओं की संख्या बढ़ी और उनकी पूजा मै शिल्पकला ने योग दिया । लागरिक जीदन मँ उन्होंने उन्नति की तथा नागरिक शासन पर उन्दने वड़ी बड़ी धिवेचनारपं की । यूनानी स्वतंत्रता के प्रथम पजारी माने जाते ह; परंतु उनकी स्वतंत्रता, उनका सामाजिक जीवनः दास प्रथा की कच्ची बुनियाद पर थी । यूनान के आयों ने पड़ोसी अनार्यों की नक़ल करके ही दास प्रथा को अपने समाज का एक आवश्यक अंग बनाया। भारत में भी आर्यो की सरल ओर प्राकृतिक धार्मिकता पर अनार्यों का रंग चढ़ा | जाति- भेद की जड़ जमी, ब्राह्मणों का प्रभुत्व बढ़ते लगा। नये-नये देवी-देवता समाज के मंदिरों सें भरती हुए; इंद्र, वरुण इत्यादि बेद्क देवताओं का अनादर होने लगा, पशुओं के वलिदान होने लगे । सभ्यता की बढ़ती हुई ऋत्रिमता का एक कारण यह भी था कि मिंधु-सरस्वती और गंगा-य्रमुना का मैदान बहुत उपजाऊ है 1 यँ आवश्यक भोजन प्राप्त करने में आरयों को कठिनाई नहीं हुईं । कृत्नि- ` मता को बढ़ाने के लिए यथेष्ट समय भी मिला । ५ परंतु इस कत्रिमता के वहुत बढ़ने पर अवसे लगभग ढाई हज़ार वपे पूवे सभ्य संसार के प्रत्येक भाग सं जीवन की वास्तविकता पर खोज करने की एक लहर व्याप्त हो गई । यह लहर उस समय से प्रकट अथवा गुप्त रूप में अत्येक देश ओर काल पर अपना असर डालती आ रही है । यह केसे शुरू हुई, इसका प्रभाव मानवीय রি पर कहाँ तक हो चुका है, इसका विवरण अगले अध्याय में हे । ह नाश সাদি २. मानवता के प्रथम उपदेशक मालूम होता है किं ठाई हजार वषे हुए सभ्य मानव-समाज ন भोजन की समस्या को दल कर लिया था और उसे श्रव इतनी দুজন थी कि बह लौकिक और पारलौकिक समस्याओं पर विचार `




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