चाँद | Chand

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Chand by मुन्शी नवजादिकलाल श्रीवास्तव - Munshi Navjadiclal Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पक... दि... क..2..2,.. कि. झात्मा और यदि इनसे परे भी कुछ हो तो वद्द भी, देवता की इच्छाचुसार चुपचाप उसके ऊपर चढ़ा देना दी उसका चमं था । उसने उस कर्तव्य को पूरा करने की, उस धर्म का पालन करने की प्रतिज्ञा कर ली । दे . कैज्ञा ससुराक्ष पहुँची । उसका पति झधेड थ्ायु का था, घनिक था । ऐसे विवादों में अधेड झाय और चेन, इन दोनों का गदरा सम्बन्ध होता है घर आायु जितनी दी बढ़ती ज्ञाती है, विवाद के लिए उतना ही अधिक धन होना झावइयक हो जाता है। लड़की के (पता जब चर के घर में घन का देर देखते हैं, तो वे वर की झायु का दिसाब भूल जाते दें । साठ वर्ष की झायु फिर उनकी ससक में ४० की ही रह जाती है । लड़की का विवाद घास्तव में मजुष्य से नहीं, घन से दोता है । इसी प्रकार का विवाद कला का था । उसके पति की आयु इतनी नहीं थी कि वह वृद्ध कहा जा खके, परन्तु कला के पिता ने उसके रुपए के लिए ही कला का विवाह सके साथ किया था । पद सब कुछ होते हुए भी कक्षा झपनी माता के मन्त्र के झनुसार झपना जीवन बिताना चाइती थी । ददद पति को वास्तव में देवता समकना चाइती थी श्र उसकी पूजा करना चाहती थी । पहले दो दिनों में दी उछे डपने पति के विषय में बहुत-कुछ विदित हो गया था। वह देवता हो सकता था, क्योंकि देवता कोई भी हो सकता है । परन्तु चद शक झा पति नहीं दो सकता था। एक नवविवाहिता पढ्नी अपने पति में जिन ादशों की, लिन भावों की करुपना करती है, उनमें से एक भी कक्ता को झ्रपने पति में नहीं दिखाई देता था । जिन शुर्णों पर रीक कर खत्री स्वयं दी, स्वेच्छा से पति को देवता समभ कर उसकी पूजा करने लगती है, डसके लिए जीवन श्वादा करने को तैयार होती है, उन्दीं गुर्णा को कला भी झपने पति में देखना चाहती थी । यह उसके लिए स्वाभाविक था । परन्तु वे गुण उसके पति में नहीं थे। फिर भी कला ने उसकी पूजा करके उसे प्रसन्न रखने का सझरप किया । उसके देवता में _ झौर मन्दिर के देवता में विशेष अन्तर नददीं था। यह अविडि..2... 4-5 5... रितिक... डिक... 4... निधि... देवता चलता-फिरता था, बह देवता एव्थयर का था, | बष ११, खरा ९, संख्या १ जे. रिकि..2... अचन था । उस देवता की पूजा लोग श्रद्धा के कारण करते थे, इस देवता की पूजा झद्धा न होने पर भी केवक रूढ़ि के कारण करनी पढ़ती थी । विवाद करके ससुरात्र आए हुए कला को कई दिन हो गए थे । झभी तक उसे झपने पति से स्नेह की एक दृष्टि भी नहीं मिली थी, प्रेम का एक शब्द भी सुनाई नददीं पड़ा था । उस दिन सन्ध्या को उसने स्वादिष्ट सोजन बनाया--वद भोजन प्रेम से बनाया. गया था और सावधानी से भी । भोजन समाप्त करके कक्षा पति की प्रतीच्षा कर रददी थी । समय व्यतीत होने कथा, परन्तु पतिदेवता न श्राए । चढ़ पदला दिन था, ज्ञब उन्दें झाने में इतनी देर हुई । इधर-उधर का सोच- विचार करती हुई कक्षा भोजन के पास ही चौके में बैठी रही । झाठ बजे, नौ बजे, दूस बजे । चह उसी प्रकार. बेठी रददी। श्राज्िर श्ब तक न झाने का कारण क्या दो सकता दे ? कभी वदद॒व्यादुल दोती,. कभी सम्देह उत्पन्न दोता, कभी स्वयं ही समाघान दो जाता । श्यारइ बजे और द्वार पर शब्द हुआ । उसने दौड़ कर द्वार स्ोला । जो कुछ उसने देखा, उससे घद किकतंब्य-विमूढ़ सीरद गईं। उसे झपने पति को, थपने देवता को बन्नविकिन . इस दशा में देखने की झाशा नहीं थी । चह कड़्खड़ा कर. गिरता-पड़ता चक्ष रद्दा था । भाँखें जकते हुए शज्कार की तरद लाल दो रही थीं। जो कुछ कहना चाइता था, वह स्पष्ट नहीं कह सकता था । उसे झपना धर पराया होश नहीं था । वह खूब पीकर श्राया था । कला के दोश उड़ गए । द्वार बन्द करके बड़ी कठिनता से वदद उसे भीतर लाई । पलजञ पड़ा था, उस पर उसे बैठा दिया. और ठयढा पानी सुँद पर डाल कर पह्झा मलने लगी | वद्द कला उठा । कुछ मत करो, यहाँ से चली जांभो !”--चहद चिल्ला कर ककश स्वर में बोला । “झापका जी झच्छा दे ?”--कला ने पूछा । “तुमे कद दिया, तुम मुझे यहीं छोड़ दो !”. “पका जी ठीक हो ज्ञाय, तब चकी जाउँगी 1” में जी ठीक होना नह्दीं चाइता । से सो जाउँगा # “बिस्तर बिछा दूँ ?” ी नही ११5. रे




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