रक्षा-बंधन : ऐतिहासिक नाटक | Raksha-bandhan etihasik Natak
श्रेणी : इतिहास / History, नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.51 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पढ़ला झिक १७
जब में कुमारी थी, स्वर्थीय मडाराणा रत्तसिंह के एकमात्र पुत्र
भेरी रूप-ज्वाला के पर्तरे चनने आए थे । वे जल भर और मुे
तिल-तिल जलने को छोड़ गए । सालवी और के
बादशाहों से युद्ध करने को जाने के लिए कराता देवी. के, मंदिर
में भेवाड़ के सभरत योद्धाओं महाराणा रलसिंद ने बुलाया
था । बेचारे कुमार नियत समय पर मेरे वाहु-पाश से छूट कर
न जा सके । केवल कुछ क्षणों का चिलंन भी. महाराणा को
सह्य न छुआ ) हु. <
चर्रिणी में सब ' समक नई, देवि | उन्दे देर से थाने के
अपराध में सत्यु-दंड मिला था । उत्ती समय उन्हें लाथा गया,
वहीं विवाद हुआ; सुदागरात सनाई गई, और दूर « दिस
काल उन्दे फॉसी दे दी गई । ४ डा
श्थाभा उस रात फा आनन्द कितना गइन था; बह रात
अभावस्था से थी काली; और शरव् पूर्णिमा से भी उन्न्वल थी ।
चड जीवन ौर सरण की संघि थी । सेवाड़, तेरे न्यांय को चह,
दंग ! ढद्थड्ीन वीरता का वह अधिभान !
चारशी अंश दमारे स्वाथ का संबनाश भले ही करे, पर
यदि कतेंल्थ के पथ पर, ब्शिदान के पथ पर जाने वाले को वह
एक क्षण मी विलभा रखें, वो उसका गला थोटना ही पड़ेगा ।
प्रेस नहीं, वासना है, भोह्द है । कार सदाससा रत्नसिंह
के एके मान पुन थे. उनेके जीवन के आधार, संपूर्ण स्मेद
के अधिकारी; आशा; विश्वास और सीत्नना थे । मेवाड़
की खातिर अपने हाथ से उन्होंने अपनीं आत्मा के श्रकार।
को फॉसी दे दी ! कया उनके पिद-ढंदूध को इससे कुछ भी कष्ट
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