कुछ आत्म कथाएँ | Kuch Atama Kathaen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महात्मा गाँधी ११
किया, परन्तु स्कूल से कहीं धम-शिक्षा न मिली । जो चीज
शिक्षकों के पास से सहज ही मिलनी चाहिए, वह् न मिली ! फिर
भी बायुन्मण्डल में से तो कुछ-न-कुछ धर्म-पेरणा मिला करती
थी । बहाँ धर्म का व्यापक अथ करना चाहिए। धर्म से मेरा
अभिप्नाय है आत्म-साक्षात्कार से, आत्म-ज्ञान से !
वैष्णव-सम्प्रदाय में जन्म होने के कारण वारघार हवेली
জালা होता था | परन्तु उसके प्रति श्रद्धा न उत्पन्न हुई । हवेली
का वैभव सुम्दें पसन््द न आया। हवेलियों में होने वाले अना-
चारों की बातें सुन-छुन कर मेरा सन उनके सम्बन्ध भें उदासीन
हो गया | वहाँ से मुझे कुछ धर्म-प्ररणा न मिली !
परन्तु जो चीज मुके देवली से न मिली, वह् अपनी दाई के
पास से मिली | वह हमारे छुटुम्त में पुराती नौकरानी थी '
उसका प्रेम मुझे आज मी याद आता है। मैं पहले कह चुका
हूँ कि में भूत-अेत से डरा करता था । रम्भा ने मुझे बताया कि
इसकी दवा राम नाम है) राम नाम की अपेता रम्भा पर मरी
अधिक श्रद्धा थी। इसलिए वचपन में मैते भूत-प्रेतादि से बचने
के लिए राम-नाम का ऊप शुरू किया । यह सिलसिला यों वहुल
दिन तक जारी न रहा; परन्तु बचपन में जो बीजारोपण हुआ
बह व्यर्थ न गया। रास-नाम जो आज मेर लिए असोघ-शक्ति
हो गया है, उसका कारण वह रम्मावाई का बोया हुआ
चीज ही है।
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