राष्ट्र - पतन | Rastra- Patan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
राजबहादुर सिंह - Rajbahadur Singh
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हरि नारायण आपटे - Hari Narayan Apte
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला परिच्छेद--दो बहनें [ १६
है उसके लिये ही मेंने तुमे बुलाया था, अब तू इस तरह मत रूठ।
तुमे जाना हो तो जा। तू अपने घर जायेगी इस बात का दुःख
मुझे नहीं है। पर इस तरह से क्रोध करके और गाली देकर
मत जा। मन शांत होने दे । मन का गुबार निकाल दे । में तुमे
अच्छी तरह ठाद-बाट से भेजूगा ।”
वयोवृद्ध राजा अपनी लड़की से इतनी दीन वाणी में बोल
रहे थे कि उन्हें ऐसा करते देख कर किसी का भी हृदय गदूगदू
हो गया होता । परन्तु विमला को ऐसा कुछ न लगा, उल्टे वह
बोली-- पिता जी, आप अब क्यों व्यथ ऐसा बोलते हैं ९ तुम्हारा
सब मन तो उस कमला पर और उसके बेटे पर लगा है। पाँव
के नीचे कुचली जाने वाली मिट्टी के बराबर भी मेरा मान यहाँ
नहीं है, फिर में क्यों रहे । अब मेंने निश्चय कर लिया है. कि
यहाँ का पानी भी न पीऊँगी । अगर आप चाहते हैं कि में सच-
सुच यहां रहँ तो कमला और उसके बेटे को भिज्वा दीजिये ।
अब वह और में एक क्षण भी एक घर में नहीं रह सकते । दो
में से एक ही रहेगा । में यहाँ रहूँ क्यों? या तो उसे भिजवा
दीजिये, नहीं तो उसे रहने दीजिये, मुझे जाने दीजिये। अब
और क्या कहूँ ९”
राजा को उसकी यह बात बहुत बुरी लगी। एक क्षण तो
उन्हों ने विचार किया कि उसे जाने ही दें, पर प्रेम में कुछ नहीं
सूमझता, प्रेम पागल होता है । उन्होंने फिर सोचा कि उसे इस तरह
नहीं जाने देंगे, अतः बोले, “क्या बोलती है ? उसे मिजवा दूँ !
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