आर्य संसार | Aarya Sansaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
452
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थ्रोश्म्
प्रसावना
आप ख्वाध्यायप्रेमी सजनों की सेवा मे इष वषे अथव.
वेद का यह ब्रह्मगवी सूक्त ( पञ्चम काण्ड का १८ घां सूक्त )
स्वाध्याय के लिये समर्पित है। इस युक्त में एक महाबरी
प्रणा-दोही राजा के मुकाबले में एक विचारे आह्षण कौ
गरीब सी वाणी को दिखाया है जिसमें कि अन्त में इस
त्राह्मण-वाणीः दी ही अनायास विजय होती है। ईश्वर
शारित इस संखार मे यह घटना कों नथी नहीं है। ऐसा
सदा ही होता है। यह सनातन सत्य है | पर इम इसे देखते
हुये भी नहीं देखते ।
इस सत्य का दशन हमें कौन करवावे ? भारतवर्ष की
रज:कण से उत्पन्न हुई हम बन्तानों मे, जिनमे कि वेदिक
অন্যরা ন্দিংকষানত तक कभी पूणे यौवन में विकसित रही है,
यदि वेद का यह सुन्दर ओबस्यो सूक्त-गीत इस सत्य को
सुझाने में सहायक हो तो इसमें कुछ आइचये नहीं है |
यह वेदिक सूक्त तो रा प्रजा दोनों के लिये है। इस
यूक्त कै सावभौम, सावदेशिक उपदेश को यदि दोनों ( राजा
और प्रजा ) सुने, स्वीकार करं तो निस्वन्देह दोनों का इसमें
कल्याण होगा | पर हम प्रजाजनों को तो इस सूक्त से अपने
लिये उपदेश लेना ही चाहिये। इसमे सन्देह नहीं मि यदि
हम इस सूक्त मे सफाई गर सचाई को स्वीकार कर ले तो
मरे हुये, दबे हुये, चिलकुछ हताश हुये हम भारतवासियों में
नये प्राण का संचार हो बाय |# इसमें हमारे दिये आशा का
आत्मविश्वास का सदेश है } यदि हम श्ये सनं घो अन्धाय
की मबह्र चतुरङ्गिणी फोन से चारो तरफ घिरे हुये भी
बेशक हम हों तो भी--
(अद्य जीवनि मा शः
(अन्याय आज नेशक जोवित हैं, पर करू नहीं इस
अठछ भ्रद्धा के कारण इस दशा में मी निर्मीक भोर निश्चिन्त
होकर अपने मार्ग में चब्ते-चके शाये। इस युक्त के ८ वे
मन्त्र में जिस दिव्य अस्त्र का वणन है आर जिते ६ वे मन्त्र
में अमोष अल कशा है, यदि हम सचमुच परे दिल से उस
অংগ को ग्रहण करले तो हमें कौन दुनिया मे नीचा रख
सकता है हम धनुष बाण ( तोप बन्दूक ) को ही दृथियार
समभते हैं? और इनके अभाव को देखकर दुःखी होते हैं,
पर तब हमें पता लग खाय कि हमारा असली बल; हमारा
असडी शस्त्र सदा हमारे पास है। उसके सामने तोप অনু
बिलकुल देच हैं, ये बेकार पड़ी रह जाती हैं |
श्वर करे कि इस यूक्त का अध्ययन इम असझ्ययों में
हमारे असली बल को अनुभव करा दे, हमारे हाथों में हमारा
सश्चा अमोष अख पडदा दे ।
(अध्य)
* यह परन्त्रता के दिनों में लिखा गया था |
ভিজ) 18৩২]
“--सम्पादक
| আহা
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