बिसाऊ दिग्दर्शन | Bissau Digdarshan

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पं. उदयवीर शास्त्री - Pt. Udayveer Sastri

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श्री अमोलकचन्द जागिड - Shri Amolakchand Jagid

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय ই देनिक उ'हे दिए जाने लगे । वि स॑ १७८० में उतको कुमुनू वी नवाबी का दीवान बताया गया । शांदु लससिह ने भु भुनू की शासन व्यवस्था सम्भालते ही बडवासी, बाठ, कोलसिया, खेडी, बघेरा, बजावा, घतूरी, घोडीवारा, चेलासी, राहैली, रिजाणी आदि के नवाबो के आातक को दवा दिया। इन सबकों श्रपने वश में बर लिया 1 वि स १७८३ में शादू लसह नवाब को लेकर टिल्ली गए । बहा उ होने बकाया की किश्तें बायम करवाई | इस प्रकार उ होने भुभूुनू की नवाबी के चरमराते ढाचे को व्यवस्थित किया । आुभुनू पवाव रोहिलाखा की शासवीय कमजोरी वे कारण उसके शतनुशों की सरया कम नही हुई । उसकी बेगम ने उसे समझाया और भुभूनू का पट्टा शादू लॉसिह्‌ को दिलवा दिया 1 राज्य पर पूण प्रधिक/र करने के लिए शादू लप्मिह ने उदयपुरवादी से अपने विश्वसनीय भाई व धुओ वो बुलाया तथा मागशीप सुदि ८ शनिवार वि स १७८७ तदनुसार ता ५ दिसम्बर, सन्‌ १७३० को भुमुनू पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार भु भुनू मे उतकी स्थिति सुद्ठ हो गई। इस घटना का सूचक निम्नलिखित दाहा प्रत्यधिवा लोक प्रचलित है-- सतरा सौ सतासिये, अगहन मास उदार । सद लीनौ इलन्‌, सुद आठ सनिवार ॥ इस प्रकार भु भुनू पर दो सो वर्षों से श्रधिक समय तक चलने वाला क्यामखानी शासन हमेशा के लिए समाप्त हो गया । इससे शूरवीर থান লিন की चातुरी, चीरता तथा घायकुशलता ही कारगर हुई । ग़गवाणा की लडाई बे' बाद शादू लक्षिह कु भुनू लौट आए। उनका सघपमय जीवन नो वष की प्नायु से ही प्रारम हो गया था शोर भु भूनू पर अ्रधिकार करन के बाद से लेकर अत तक उहोते भनेक युद्ध लडे। वैर्श्रतम समय से परशुरामपुरा से रहने लगे और ईश भक्ति से लीव रहने लगे । यहा उहोने अपने श्र तम॑ समय से वि स १७६८ म श्री गापीनाथ जी का मदिर वनवाया । कुछ समय बाद वे बीमार हो गए ओर चेन सुदि १३वि से १७६६ का उनका स्वग॒वास परशुरामपुरा म हो गया । उनके लिए निम्नलिखित दोहा अत्यधिक प्रसिद्ध है-- सादूलो जगराम रो, सिहल बुरो লাম । राम दुहाई फेरदो, ह्हूकती फिर छुदाय ॥




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