मानवी | Manvi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
123
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानवी
हे शृज्ञामयों शोभा तू,
करुणा की हमजोली ।
रहती रै वात्सल्य-भाव के
रस से भीगी चोली ।
तेरे प्रेम-स्पश से पुलकित
आँख जगत ने खोली ।
पर तो भी रह गई अभी तक
निद्रित दी तू भोली!
हे स्वामिनी नगत के उर की
प्रेम - राज्य की रानी ।
युग - युग ॒के अगणित शो की
तू हे कर्ण कहानी |
पानव-कुल को शक्ति - दायिनी
त् है भव्य भवानी
बनती है तू विश्व-विजयिनी
ले आँखों में पानी।
रोते हुए क्षुधित जग-शिश्षु की
हे माता कटयाणी ।
सदा न्याय - रक्षा के हित तू
हे रण में वीराणी ।
२
শি
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